शमीक ऋषि &सर्प यज्ञ Sarp Yagya Part AA
- एक बार हस्तिनापुर के राजा परीक्षित जंगल से होकर जा रहे थे, रास्ते में उन्हें प्यास लगी और वे एक कुटी की तरफ चल दिए वहां उन्हें एक मुनि दिखाई दिए राजा परीक्षित ने मुनि से पानी माँगा किन्तु मुनि मौनी थे वे बोल नही सकते थे,राजा ने कई बार आवाज़ दी पर मुनि कुछ न बोले वे आंखे बंद किये रहे इस पर राजा क्रोध में आ गए और पास में ही एक सांप मरा पड़ा था उसे तीर की नोक से उठाकर उन शमीक मुनि के गले में डाल दिए और अपने महल में वापस आ गए .शमीक ऋषि का पुत्र था श्रङ्गी ऋषि को यह पता चला तो वे बहुत नाराज हुए और उन्होंने श्राप दिया जिसने भी मेरे पिता शमीक ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाला है उसे सात दिन में तक्षक नाग डस ले और मार डाले .जब यह बात शमीक ऋषि को पता चली तो वह बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने राजा परीक्षित को सन्देश भिजवाया कि आप की म्रत्यु सात दिन में हो जाएगी अतः आप सतर्क रहे .
- सातवे दिन तक्षक नाग परीक्षित को काटने के लिए चल दिया,रास्ते में तक्षक को एक ब्राह्मण मिला . तक्षक ने पूछा की तुम कहाँ जा रहे हो ब्राह्मण ने कहा कि मै परीक्षित को बचाने जा रहा हूँ ,आज तक्षक राजा को काटने के लिए आएगा, तक्षक ने पूछा कि तुम राजा को कैसे बचा पाओगे ? ब्राह्मण ने कहा कि सांप के काटे हुए को जीवित कर देता हूँ ,तब तक्षक ने एक पेड़ को डस दिया और उसे निर्जीव कर दिया फिर ब्राह्मण से कहा कि तुम इस पेड़ को फिर से जीवित कर के दिखाओ ,ब्राह्मण ने मन्त्र पड़ा और पेड़ को जीवित कर दिया , तक्षक समझ गया की ब्राह्मण में शक्ति है तब तक्षक ने ब्राह्मण से कहा कि तुम वंहा किस लाभ के लिए जा रहे हो ?ब्राह्मण ने कहा की वहां धन मिलेगा ,इस पर तक्षक ने मिलने वाले धन से अधिक धन दिया और ब्राह्मण को वहां से वापस जाने को कह दिया ,ब्राह्मण तक्षक से अधिक धन लेकर रास्ते से ही वापस लौट गया और महल में राजा को बचाने नही गया.उस पेड़ के ऊपर एक व्यक्ति बैठा था जो सारी बात सुन रहा था .
- तक्षक राजा के महल में रात में गया और परीक्षित को डस कर मार डाला , परीक्षित के पुत्र का नाम जनमेजय था ,जब जनमेजय को यह पता चला कि मेरे पिता ने शमीक ऋषि के गले में एक मरा सर्प गले में डाल दिया था और उनके पुत्र श्रङ्गी ऋषि के श्राप के कारण मेरे पिता की म्रत्यु हुई है इसपर जनमेजय को बहुत लज्जा आई और उन्होंने बदला लेने का बचन लिया ,जनमेजय ने कहा कि इसमे शमीक ऋषि कि कोई गलती नही किन्तु तक्षक ने मेरे पिता को क्यों डसा ? जबकि एक ब्राह्मण मेरे पिता को बचाने आ रहा था उसे भी वापस कर दिया ,ब्राह्मण को वापस करने की बात उस व्यक्ति ने बता दी थी जो उस समय पेड़ पर बैठा सुन रहा था ,तब जनमेजय ने प्रण लिया कि मै एक यज्ञ करूँगा जिसमे विश्व के सभी सर्पो को जलाकर भस्म कर दूंगा .जनमेजय के राजपुरोहित और ऋत्विजौं ने भी राजा का समर्थन किया कि ऐसा पुराणो में भी लिखा है .
- जनमेजय का सर्प यज्ञ प्रारम्भ हुआ ,लम्बे लम्बे और बहुत खतरनाक सर्प यज्ञ में जलकर भस्म होने लगे ,कुछ बहुत छोटे,कुछ मोटे ,कुछ पतले किन्तु लम्बे सभी सर्प यज्ञ में आ-आ कर गिर रहे थे ,यह एक महान सर्प यज्ञ था इसमे जैमिनि ब्रह्मा बने थे और व्यास आदि भी उपस्थित थे .यह समाचार सभी सर्पो तक पहुँच गया की यज्ञ में सर्पो की म्रत्यु निश्चित है सर्पो के शरीर जलने लगे जो जहाँ थे उन्हें वहीँ गर्मी लगने लगी
- वासुकी नाग ने अपनी बहन जरत्कारू से कहा कि बहन आपका विवाह जरत्कारू ऋषि से इसी लिए किया था कि वे कोई उपाय करें ![जरत्कारू की पत्नी और पति जरत्कारू नाम एक ही था ही,इनके पुत्र का नाम आस्तीक था ], आपका पुत्र आस्तीक ही अब रक्षा कर सकता है ,आस्तीक नाग वंश का होने पर भी महान वेद वेत्ता और बालक होने पर भी वृद्ध पुरुष का अनुभव रखता था ,सब बात आस्तीक को बताई गई तब आस्तीक ने कहा मै सर्प यज्ञ को अवश्य बंद करवाऊंगा ,तब आस्तीक उस यज्ञ में पहुंचे और सभी को प्रणाम किया ,फिर यज्ञ में वे खुद पहुंचे पर द्वारपालों ने उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया तब वे बाहर बैठकर ही यज्ञ की स्तुति करने लगे तब राजा ने उन्हें यज्ञ मंडप में आने की अनुमति दे दी ,आस्तीक ने कहा की तक्षक सहित सभी सर्पो को अब मरना ही होगा भली तरह से स्तुति करने के कारण सभी पुरोहितो और यज्ञाचार्यौं ने उन्हें यज्ञ करने को भी कहा उनकी स्तुति से तक्षक भी आकाश में दिखने लगा जो यज्ञ शाला में गिरने जा रहा था ,सभी यज्ञ आयोजकों ने तब आस्तीक से बरदान मांगने को कहा कि हमारा यज्ञ अब सफल होने वाला है बताओ तुम क्या मांगते हो ?तब आस्तीक ने कहा की अब यज्ञ समाप्त कर दो और जो सर्प अब तक बचे है उन्हें बचा लो , इस पर जनमेजय दुखी हुए और कहा कि सोना चांदी महल सब मांग लो किन्त बचे सर्पो का जीवन मत मांगो ,तब आस्तीक ने कहा कि मै अपने मात्रकुल की रक्षा चाहता हूँ ,यज्ञ आयोजकों और वेद्ग्यो ने कहा कि अगर तुमने माँगा है तो बरदान वापस नही लिया जायेगा और अब यज्ञ समाप्त किया जाता है .इस प्रकार आस्तीक ऋषि ने तक्षक सहित बचे हुए नाग वंश की रक्षा की .
Comments
Post a Comment