गंगा का अवतरण Origin Of Ganga Part X

                         भगीरथ का स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी लाना पर

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इक्ष्वाकु वंशीय राजा सगर बड़े प्रतापी राजा थे उनके दो पत्त्नियां थी .एक का नाम शैव्या दूसरी का नाम वेदर्भी था .वे अपनी पत्नियों सहित हिमालय पर्वत पर योग और तपस्या के लिए गए थे .प्रसन्न होने पर शिव ने बरदान मांगने कहा ,महाराज सगर ने दोनों पत्नियों के पुत्र होने का बरदान माँगा .शिव ने एक पत्नी को साठ हजार पुत्र किन्तु शीघ्र ही नष्ट हो जायेंगे  व दूसरी पत्नी को केवल एक ही पुत्र किन्तु वंश चलाने वाला होगा ऐसा वरदान दिया

 .राजा सगर प्रसन्न होकर तपस्या से वापस आ गये.समय गुजरने के बाद  शैव्या से एक बालक का जन्म हुआ .वेदर्भी से एक तुम्बी {लौकी ] का जन्म हुआ .राजा इस फल को फेकने ही जा रहे की आसमान से एक आकाशवाणी हुई की राजन ऐसा साहस न करो ,इसमे तुम्हारे पुत्र है ,इस तुम्बी में जो बीज है वे ही तुम्हारे साठ हजार पुत्र है ,इन बीजो को निकालकर गरम घी में रखो फिर अलग अलग घडो [गागर ]में घी सहित रख दो ,इन्ही से तुम्हारे साठ हजार पुत्र निकलेगे .आकाशवाणी सुनकर राजा ने ऐसा ही किया .तुम्बी  से एक एक बीज निकालकर राजा ने अलग अलग घड़ों में एक एक बीज रखवा दिए.बहुत समय बाद राजा को साठ हजार पुत्र एक एक घड़े से प्राप्त हुआ

.वे सभी पुत्र महान तेजस्वी और वीर हुए .वे सभी क्रूर और घोर थे और पाप प्रक्र्ति के थे .बहुत समय बाद राजा ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करवाया .उनका छोड़ा हुआ घोडा सातों दीपों में घूमता हुआ एक गहरे घड्डे  में जा पहुंचा .यह घड्डा जल विहीन समुद्र था .यद्यपि सभी पुत्र चौकसी [निगरानी] कर रहे थे फिर भी घोडा अद्रश्य होकर खो गया .वह ढूडने पर भी न मिला राजपुत्रो ने समझा की घोड़े को किसी ने चुरा लिया है। राजपुत्रो ने ऐसा ही राजा से कह दिया की अपने घोड़े को किसी ने चुरा लिया है।


सगर ने आदेश दिया की जब तक घोडा न मिल जाये वापस न आना और फिर से घोड़े की तलाश करो ,पुत्रो ने ऐसा ही किया। उन्होंने समुद्र की खाली गहराइयों को खोदा उन्हें समुद्र की जगह में एक छेद दिखाई दिया उसे भी खोदा फिर भी घोडा दिखाई न दिया इससे राजपुत्रों का क्रोध और बढ़ गया फिर उन्होंने  ईशान कोण की ओर पाताल तक  खुदाई की। उन्हें एक दिव्य ज्योति दिखाई दी जो एक मुनि की थी यह मुनि कपिल थे ,वहीँ पर उन्हें  राजपुत्रो को अपना घोडा दिखयी दिया राजपुत्रो को बहुत प्रसन्नता हुई कि उन्हें उनका घोडा मिल गया है।

 वे सब कपिल मुनि को भलाबुरा कहने लगे और घोड़े को लेने के लिए बिना कुछ कहे आगे बढ़े ,इसपर कपिल मुनि बहुत नाराज हुए उनके बिना पूछे ही वे घोड़े को ले जाने लगे तब कपिल मुनि को उन राजपुत्रो की उद्दन्डता पर क्रोध आया और श्राप देकर भष्म कर दिया नारद जी ने सगर को सूचना दी की राजपुत्रो को कपिल मुनि ने भष्म कर दिया राजा को बहुत दुःख हुआ।

 फिर उन्हें महादेव का बचन याद आया और उन्होंने पुत्र असमंजस के पुत्र  अंशुमाल को याद किया ,सगर ने अंशुमाल के पिता असमंजस को अपने राज्य से बाहर कर दिया था क्योकि असमंजस  राज्य की प्रजा के उन बालको को गला पकड़ कर नदी  फेंक देता था जो कमजोर गूंगे बहरे हो या कमजोर हो ,इससे प्रजा भयभीत रहती थी इसलिए सगर ने अपने पुत्र असमंजस को राज्य से बाहर कर दिया था

,असमंजस के पुत्र अंशुमाल से सगर ने कहा तुम मेरे पुत्र के पुत्र हो अतः अब कोई उपाय करो जिससे तुम अपने परिवार के जनो को कलंक रहित मृत्यु प्राप्त हो और वे स्वर्ग में सुखपूर्वक रह सके। अपने परिवार के लोगो की मृत्यु पर अंशुमाल को दुःख हुआ और वह अपने पिता के पिता सगर के कहने पर यज्ञ के घोड़े को  ढूडने चल पड़ा।

 वह घूमते घूमते उसी समुद्र के घड्डे के पास पहुंच गया जहां कपिल मुनि और घोडा था। अंशुमाल ने कपिल से घोडा लेने का निवेदन किया और कपिल को प्रणाम किया ,अंशुमाल की बातो से कपिल मुनि खुश हुए और कहा जो चाहिए वह मांग लो ,अंशुमान ने घोडा माँगा कपिल ने घोडा देना स्वीकार कर लिया। फिर अंशुमान ने कहा मुनिवर मेरे परिवार के सगर पुत्रो की मृत्यु आपके कारण हुई है अब इनका उद्धार कैसे होगा वह भी बता दे  ?

कपिल मुनि ने कहा तुम्हारे कुल में भगीरथ का जन्म होगा ,शंकर जी की कृपा से गंगा का अवतरण पृथ्वी पर होगा , भगीरथ ही सभी को तरन तारण करेंगे अर्थात उद्धार करेंगे। ऐसा सुनकर अंशुमाल घोड़े को लेकर  अपने पिताममह [पिता के पिता ]सगर के पास आ गए ,वे अंशुमाल से बहुत प्रसन्न हुए ,फिर वे अंशुमाल को राज्य देकर तप करने हिमालय चले गए।

सगर के पुत्र दिलीप हुए ,दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए जिन्होंने शंकर जी की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया और स्वर्ग से गंगा ले आने का वरदान प्राप्त किया ,गंगा जब स्वर्ग से आयी तो उनका वेग बहुत तीव्र था ,शंकर जी ने उन्हें अपने सिर की जटाओ में लपेट लिया फिर गंगा के कुछ अंशो को मुक्त कर दिया ,गंगा ने भगीरथ से कहा की अब कहा चलना है मै चलने को तैयार हूँ क्योकि मेरे वेग को पृथ्वी पर  कोई रोक नहीं सकता था शंकर जी जटाओ में सिमट कर मै अब शांत हूँ ,भगीरथ आगे आगे चल दिए पीछे पीछे गंगा जी चल दी ,भगीरथ वहां वहां गए जहां उनके पूर्वज थे गंगा के स्पर्श से वे सब तर गए ,आगे जाकर गंगा जी समुद्र के खाली घड्डे के समीप पहुंची और उन्हें जल से भर दिया ,इस प्रकार से सगर पुत्रो का कल्याण हुआ। 

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