आस्तीक ऋषि Asteek Rishi Part AB

सतयुग में दक्ष प्रजापति के 13 पुत्रियां थी उनमे से  एक का नाम  कद्रू दूसरी का नाम विनता था ,इन दोनों पुत्रियों के पति ऋषि कश्यप थे .एक बार ऋषि कश्यप ने अपनी दोनों पत्नियों से खुश होकर कुछ भी मांगने को कहा कद्रू ने कहा की मेरे हज़ार पुत्र हो वे तेज पूर्ण नाग उत्पन्न हो ,विनता ने कहा की मेरे केवल दो ही पुत्र हो और वे श्रेष्ठ हो .इस प्रकार कद्रू के एक हज़ार सर्प हुए और विनता के दो पुत्रो में एक का विनाश हो गया दूसरा गरुण हुआ . यही गरुण विष्णु भगवान का वाहन हुआ .  कद्रू की संताने जो सर्प  थे उनमे वासुकि ,शेषनाग,एलापत्र , तक्षक आदि प्रसिद्ध हुए ,एक बार कद्रू और विनता में शर्त लगी थी इस कारण सभी सर्पो को उच्चैश्रवा घोड़े की पूंछ में चिपकना था और जो सर्प यह काम नही करेगा उसे मरना होगा ऐसा श्राप सर्पो की माँ कद्रू ने दिया था जिसमे कुछ सर्प घोड़े की पूँछ में नही चिपके थे उन्हें अब मरना था ,यह चिंता करते हुए शेषनाग ब्रह्मा जी की तपस्या करने लगे ,शेषनाग जी का तन सुख रहा था ,तपस्या के कारण न वे कुछ खाते और न पीते ,उनकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उनसे कुछ मांगने को कहा शेषनाग जी ने कहा कि मेरे भाई मूर्ख है और मै उनके साथ नही रहना चाहता ,ब्रह्मा जी ने कहा ठीक है तुम धर्म का पालन करते हो और अन्याय से दूर रहना चाहते हो अतः तुम प्रथ्वी सूर्य ग्रह तारे समुद्र  आदि के आधार बन जाओ और सदा हमारे साथ क्षीर सागर में रहना मै तुम्हारे शरीर पर ही विश्राम करूँगा ,इस तरह से गरुण और शेषनाग ब्रह्मा जी के साथ हो गये ,वासुकि नाग  समुद्र मंथन में रस्सी बने थे और इनकी  बहन का नाम था जरत्कारू .

,वासुकि नाग  को अपने बचे हुए भाइयो की चिंता होने लगी की उनकी म्रत्यु को कैसे रोका जाय ?उसने सभी सर्पो को बुलाया और कहा कि हम लोगो की जनमेजय के यज्ञ में म्रत्यु होगी उस यज्ञ से कैसे बचा जाय ?बहुत से सर्पो ने विभिन्न उत्तर दिए जैसे पुरोहित को ही मार दिया जाय या जनमेजय की ही हत्या कर दी जाय किन्तु फिर से अधर्म हो जायेगा और फिर नया दूसरा पाप हो जायेगा  तब एलापत्र सर्प ने कहा कि जब माँ श्राप दे रही थी तब मै डरकर उनकी गौद में बैठ गया था ,उस समय देवता बाते कर रहे थे कि कौन सी माता होगी जो अपने पुत्रो को मारने के लिए ऐसा कहेगी यह कद्रू दुष्ट है ,तब ब्रह्मा जी ने कहा कि कद्रू ने जो किया वह मेरी इच्छा से ही किया है इसलिए मैंने रोका नही ,सर्प जगत में बहुत हो जायेंगे और वे बहुत क्रूर और दुष्ट है ,केवल दुष्ट  क्रूर,पापी ,क्रोधी डरावने ,विषेले  तथा ज़हरीले सर्प ही मारे जायेंगे पर धर्मात्मा सर्प सुरक्षित रहेंगे और यह बात भी है कि यायावर वंश में जरत्कारू नामक ऋषि होंगे और उनकी पत्नी का नाम भी जरत्कारू होगा , उनके पुत्र आस्तीक ही इस यज्ञ से तक्षक आदि नागो को बचा सकेंगे .

तब एलापत्र ने कहा हे वासुके नाग आपकी बहन जरत्कारू है उसका  विवाह जरत्कारू ऋषि से करा दीजिये जिससे आस्तीक का जन्म हो .एलापत्र की बात सुनकर वासुकि अपनी बहन जरत्कारू की सेवा और सुरक्षा करने लगा जिससे की उसकी बहन  [जरत्कारू ] का विवाह जरत्कारू ऋषि से हो सके ,वासुकि ने सभी सर्पो को आज्ञा दी कि उसकी बहन के लिए जरत्कारू ऋषि का पता किया जाय .

      जरत्कारू ऋषि की कथा और आस्तीक ऋषि का जन्म 

जरत्कारू ऋषि विवाह नही करना चाहते थे और वे केवल तपस्या ही करते थे एक बार वे कहीं जा रहे थे उन्हें रास्ते में एक कुआ दिखाई दिया ,उस कुए में एक पतली सी डाल पर कुछ मुनि तपस्या करते मिले ,यह डाल किनारे पर बहुत पतली थी ऐसा लगता था की यह डाल अभी टूट कर गिर जाएगी साथ ही ये मुनी भी कुए में गिर जायेंगे ,तब जरत्कारू ने पूछा कि आप लोग कोन है और यंहा क्या कर रहे है ,उन मुनियों ने कहा की हम यायावर वंश के पूर्वज है और हमारी तपस्या व्यर्थ जा रही है इसलिए यह मोटी डाल भी कुए पर आकर पतली हो जाती क्योकि हमारे वंश में अब कोई जीवत नही रहा है जो हमे स्वर्ग तक पहुंचा दे क्योकि केवल अब जरत्कारू ही हमे बचा सकता है यदि वह विवाह कर एक संतान उत्पन्न कर श्रेष्ठ कर्म कर दे तो हम स्वर्ग जा सकते है ,जब जरत्कारू ने यह सुना तो उसने कहा की मै ही जरत्कारू हूँ और मै यायावर वंश का हूँ ,मै आप सब को अवश्य स्वर्ग जाने के लिए अपना विवाह करूँगा और अपने पूर्वजों को स्वर्ग का मार्ग दूंगा 

अब जरत्कारू ने सबसे कहा कि  मेरा विवाह करवा दिया जाय किन्तु कोई न करता क्योकि उनका शरीर तप के कारण सूख गया था ,जब सर्पो को पता चला की जरत्कारू विवाह करना चाहते है तो उन्होंने नागराज को सूचना दी वासुकि नाग ने अपनी बहन की शादी जरत्कारू ऋषि से कर दी ,कुछ समय बाद जरत्कारू के एक पुत्र हुआ जिसका नाम आस्तीक रखा गया इसी आस्तीक ऋषि ने जनमेजय के सर्प यज्ञ में तक्षक नाग की जान बचाई .जनमेजय के सर्प यज्ञ और तक्षक की कहानी  Part AA  देखे 

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