प्रियव्रत और रेवत ,तामस ,उत्तम मन्वन्तर Priyavrat Dynasty Part AL
स्वयंभू मनु के दो पुत्र थे उत्तानपाद और प्रियव्रत ,उत्तानपाद के बारे में पिछले Part AK में जाना था ,अब प्रियव्रत के वंश के बारे में जानते है। प्रियव्रत की दो पत्नी थी जिसमे एक का नाम था बहिर्ष्मती ,बहिर्ष्मती विश्वकर्मा की पुत्री थी ,विश्वकर्मा की एक पुत्री जिसका नाम संज्ञा था का विवाह विवस्वान से हुआ था ,विश्वकर्मा देवताओं के वास्तुकार थे,अर्थात वे महल, किला ,भवन और मायानगरी के निर्माता थे ,
प्रियव्रत की पत्नी बहिर्ष्मती से 10 पुत्र हुए और एक कन्या हुई। उनके नाम 1-आग्नीघ्र 2 -इध्मजिन्ह 3-यञबाहु 4 -महावीर 5 हिरण्यरेता 6 -घृतपृष्ठ 7 -सवन 8-मेधातिथि 9-वीतिहोत्र 10 -कवि। इन दस पुत्रो के अतरिक्त एक पुत्री भी थी जिसका नाम ऊर्जस्वती था ,जिसका विवाह असुरो के गुरु शुक्राचार्य से हुआ था।
प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम ,तामस ,रैवत ये तीन पुत्र हुए जिनके नाम से तीन मन्वन्तरों के नाम हुए। मन्वन्तर समय की माप के लिए युग से बड़ी इकाई को कहते है। प्रथम मन्वन्तर स्वयंभू मनु के नाम से हुआ दूसरा मन्वन्तर स्वरोचित के नाम से जाना गया था ,तीसरा मन्वन्तर उत्तम के नाम से उत्तम मन्वन्तर हुआ ,चौथा तामस मन्वन्तर कहलाया और पांचवा रैवत मन्वन्तर हुआ ,छटवा मन्वन्तर उत्तानपाद के वंश का हुआ जिसे चाक्षु के नाम से चाक्षुस मन्वन्तर कहा गया है। वर्तमान में सातवां मन्वन्तर चल रहा है जिसका नाम है वैवस्वत मन्वन्तर ,कुल 14 मन्वन्तर पूरे किये जायेंगे। अभी 7 मन्वन्तर का समय भविष्य में है।
प्रियव्रत की पत्नी बहिर्ष्मती से उत्पन्न पुत्र कवि ,महावीर और सावन तीनो नैष्ठिक ब्रह्मचारी हो गए थे तब राजा प्रियव्रत ने 11 अर्बुद तक राज किया ,एक बार इन्होने पृथ्वी पर दो सूरज [एक सूरज दूसरा चन्द्रमा ]बना दिए इन्होने देखा की सूरज केवल पृथ्वी के एक भाग को ही प्रकाश देता है लेकिन दूसरी ओर का भाग में अँधेरा रहता है इसलिए इन्होने पृथ्वी पर एक और सूरज बना दिया था । जब दूसरा सूरज बनाया तो इनके रथो के पहियों के चलने से पृथ्वी पर गड्डे हो गए थे। इनके गड्डे ही 7 समुद्र बने थे। पृथ्वी के 7 भाग जो समुद्र से अलग थे उनके भी 7 भाग कर उनके नाम 1 -जम्बू 2 -,प्लाक्ष,3--शल्मिलि 4-,कुश ,5-क्रोंच ,6-शाक और7- पुष्कर द्धीप नाम रखे।
जब प्रियव्रत को संसार से मोहभंग हुआ तो वे फिर से श्री हरि की शरण में चले गए अब उनका पुत्र आग्नीघ्र जम्बूदीप का राजा हुआ। एक बार वे पितृलोक की कामना से मंदराचल की गुफाओं में तपस्या कर रहे थे तब ब्रह्मा जी उनकी संतनोत्पति के लिए स्वर्ग की गायिका पूर्वचित्त को आग्नीघ्र के पास विवाह के लिए भेज दिया। आग्नीघ्र और पूर्वचित्त से 9 पुत्रो का जन्म हुआ 1-नाभि 2-किम्पुरुष 3-हरिवर्ष 4 -इलावृत 5-रम्यक 6-हिरण्मय 7 -कुरु 8-भद्राश्व 9 केतुमाल इन सब की 9 पत्नी थी जिनके नाम मेरु,प्रतिरूपा ,उग्रद्रष्ट्री।,लता ,रम्या ,श्यामा ,नारी ,भद्रा ,और देवनीति हुए।
इनमे से नाभि की पत्नी मेरु के कोई संतान न थी अतः नाभि ने श्री हरि की उपासना की श्री हरि ने नाभि को बचन दिया कि वे नाभि के पुत्र रूप में स्वयं जन्म लेंगे ऐसा कह कर कुछ समय बाद श्री हरि ने मेरु के गर्भ से जन्म लिया यह एक अवतार था श्री हरि का अतः इनका नाम ऋषभ हुआ। ऋषभ का अर्थ होता है श्रेष्ठ।
क्रमशः
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