वैवस्वत मनु & श्राद्धदेव Vaivsawt Manu or Shradhdev Manu Part AS
- हम जानते है कि कुल 14 मनु है। जिनमे से 6 पूर्व में हो चुके है और वर्तमान में सातवें मन्वन्तर में वैवस्वत मनु ही हमारे मनु है जिनका नाम वैवस्वत मनु है। इन्हे ही श्राद्धदेव मनु भी कहा जाता है। श्राद्धदेव मनु की पत्नी का नाम श्रद्धा है.
- दस प्रचेताओं की पत्नी मरिषा से दक्ष का जन्म हुआ था ,दक्ष की पत्नी थी आक्सनी ,[एक दक्ष इससे पूर्व भी हुए थे जो ब्रह्मा के पुत्र थे जिनकी पत्नी का नाम था प्रसूति ,प्रसूति स्वयंभू मनु की पुत्री थी ,जो प्रथम मनु थे] दक्ष की पत्नी आक्सनी की 60 पुत्रियां थी जिनमे से 13 का विवाह कश्यप से हुआ था। उन तेरह कन्यायों में से एक का नाम था अदिति। कश्यप और अदिति से 8 पुत्र हुए जिनमे एक का नाम था विवस्वान , विवस्वान की पत्नी संज्ञा थी। विवस्वान और संज्ञा से श्राद्धदेव मनु अर्थात वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। वैवस्वत मनु के पुत्र हुए वेन,धृष्णु ,नरिष्यन्त, नाभाग,इक्ष्छाकु ,कारूप ,शर्याति ,इला ,कन्या ,प्रषघ्र और नभारिष्ट हुए , मनु के 50 पुत्र और भी हुए पर वे आपस में लड़मर कर नष्ट हो गए थे।
- वैवस्वत मनु पहले संतानहीन थे उन्हें संतान प्राप्त कराने के लिए वशिष्ठ मुनि ने एक यज्ञ कराया था ,जब यज्ञ किया जा रहा था तब मनु की पत्नी श्रद्धा ने यज्ञ कर्ताओं से एक पुत्री की कामना की फल स्वरुप श्राद्धदेव मनु को पहले एक पुत्री प्राप्त हुई जिसका नाम इला हुआ ,जिससे मनु महाराज दुखी हुए ,जब वशिष्ठ ने यह जाना की राजा श्राद्धदेव मनु प्रसन्न नहीं है तब उन्होंने शिव की आराधना की शिव ने आशीर्बाद दिया की इला ही पुरुष बन जाय। इस प्रकार से इला पुत्री से पुत्र बन गया इस पुत्र का नाम हुआ सुधुम्न . एक बार सुधुम्न मेरु पर्वत पर घोड़े के साथ शिकार खेलने निकला था की रास्ता भूल गया और वह मेरु पर्वत की तलहटी में चले गए वहां शिव शंकर भगवान विहार किया करते थे। उस घाटी का बरदान यह था की जो भी वहां जा पहुँचता वह स्त्री बन जाता था। इस तरह से सुधुम्न फिर से स्त्री बन गए और उनका घोडा भी घोड़ी बन गया था। इस घाटी का यह बरदान स्वयं शिव ने बना रखा था जिसका कारण यह था की एक बार अम्बिका देवी वस्त्रहीन थी उस समय कुछ ऋषि शिव के दर्शन के लिए आये थे किन्तु अम्बिका को देख वे वापस चले गए। जब शिव को यह पता चला तो उन्होंने श्राप दिया की इस घाटी में जो भी आएगा स्त्री हो जायेगा।
- इस तरह से सुधुम्न स्त्री हो गए। वहां वहुत सी स्त्रियां थी तभी बुध ने देखा की कोई स्त्री उन्हें देख रही है ,बुध भी उस स्त्री पर मोहित हो गए। बुध और उस स्त्री से पुरुरवा का जन्म हुआ।
- क्रमशः
- भावार्थ -पुराणों की कहानियां और मन्त्र गूढ़ अर्थ लिए होते है सामान्य तरह से समझने से इनके अर्थ प्राप्त करना कठिन है। वैदिक और पौराणिक कहानियों में किसी भी तत्व जैसे सूर्य ,चंद्र ,इंद्र ,देवता ,इनके आधिदैहिक ,आधिभौतिक ,और आध्यात्मिक अर्थ होते है। हम किसी कहानी को सरल शब्दों नहीं समझ सकते हमे समझने के लिए सूर्य को तीन तरह से समझना होगा ,जो सूर्य दिखता है वह आधिभौतिक है ,कहानी में आधिदैहिक है ,और जो नहीं दिख रहा वह वह आध्यात्मिक है , इसे स्थूल ,सूक्ष्म कारण शरीर में भी वांट सकते है। कहानियां मनोरंजन के लिए नहीं है ,न ही इनका सामान्य अर्थ निकाला जाय ,ये किसी रहस्य से पर्दा हटा रही है। वेदो में कोई कहानी नहीं है ,पर पुराणों में कहानियां ही कहानियां है जो एक एक दूसरे की पूरक है। सृष्टि निर्माण की कोई वैज्ञानिक कहानी नहीं है सभी परिकल्पनाएं ही है ,परिकल्पना असत्य ही हो यह अनिवार्य नहीं है।
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