प्रथ्वी और वाराह Earth & Boar Part AD

जब ब्रह्मा जी ने भूः ,भुवः ,स्वः शब्द कह कर जिस कमल पर बैठे थे उसके तीन भाग कर तीन लोक बना दिए ,ऐसा कर उन्होंने नयी सृष्टि की नीव रची ब्रह्मा जी ने अपने संकल्प से 10 पुत्र उत्पन्न किये उनके नाम हुए
 1-मरीच ,2-पुलत्स्य ,3-पुलह ,4-अत्रि ,5-अङ्गिरा ,6-कृत  7 -भृगु 8 -वशिष्ठ 9 -दक्ष  10 - नारद 

नारद जी ब्रह्मा की गोद से ,दक्ष ब्रह्मा के अंगूठे से ,वशिष्ठ प्राण से ,भ्रगु त्वचा से ,कृत हाथ से ,पुलह नाभि से ,पुलत्स्य कानो से ,अंगिरा मुख से ,अत्रि नेत्रों से ,मरीच मन से हुए। ब्रह्मा के स्तन से धर्म और पीठ से अधर्म का जन्म हुआ , गुदा से पाप और राक्षस के अधिपति या स्वामी निऋति का जन्म हुआ ,मुख  से वाणी की देवी सरस्वती और उनकी छाया [shadow ]से कर्दम ऋषि का जन्म हुआ 

ब्रह्मा जी के इतने पुत्र होने पर भी  सृष्टि का उतना विकास नही हो पाया जितना वे चाहते थे अतः उन्होंने अपने शरीर के दो भाग कर दिए एक भाग से प्रथम मनु स्वायम्भुव मनु हुए और दुसरे भाग से शतरूपा हुई।  स्वायम्भुव मनु पति हुए और शतरूपा उनकी पत्नी हुई। स्वायम्भुव मनु ने तब हाथ जोड़कर ब्रह्मा जी पूछा प्रभु क्या आज्ञा है जिससे मै आपको प्रसन्न कर सकूँ ?ब्रह्मा जी ने उन्हें  सृष्टि के विकास की बात की और कहा की तुम अपने वंश की वृद्धि करो .मनु जी ने तब कहा की भगवान हमारी सृष्टि के विकास के बाद हम कहाँ रहेंगे ?पिछले कल्प में समस्त सृष्टि का विनाश हो गया है और प्रथ्वी भी रसातल में डूबी हुई है हम सब कहाँ रहेंगे [प्रत्येक कल्प के बाद पूरा संसार नष्ट हो जाता है ,तब नयी सृष्टि का निर्माण होता है ]ऐसा सुनने के बाद ब्रह्मा जी सोच में पड गए तब उन्होंने श्री हरि का स्मरण किया स्मरण करते ही उनकी नाक से एक मटर के दाने के बराबर का एक सुअर निकला और बाहर आते ही वह बड़ी तेजी से मोटा होने लगा ,जो अभी मटर के बराबर था वह कुत्ते के बराबर हुआ फिर घोड़े जितना बड़ा हुआ फिर हाथी जितना बड़ा हो गया बड़ते बड़ते वह देत्यकार विशाल हो गया उनकी विशालता से सभी घबराने लगे और वह सूअर [वाराह ]बहुत तेज़ कूदने लगा तभी श्री हरि की आकाशवाणी हुई जो सबको सुनाई दी की घबराने की जरुरत नही है यह सूकर [सूअर ]ही प्रथ्वी को रसातल से ढूंड कर लायेगा फिर उस सुकर ने रसातल में जाकर प्रथ्वी की तलाश की ,वह सूकर प्रथ्वी को  अतल गहराइयों से ढूंड भी लाया ,सूकर ने प्रथ्वी को अपने एक दांत पर रख लिया और ऊपर की और चल दिया ,लेकिन रास्ते में ही एक देत्य हिरण्याक्ष  ने जो   सृष्टि का और ब्रह्मा का विरोधी था उसने सूकर को रास्ते में ही रोकने की कोशिश की दोनों में भयंकर युद्ध हुआ फिर सुकर ने उस दैत्य को ही मार डाला और प्रथ्वी को रसातल के जल से बाहर निकल कर ब्रह्मा जी को दे दी .वास्तव में सूकर रूप में स्वयं श्री हरि ही थे जिन्होंने दैत्यों से प्रथ्वी की दैत्य से रक्षा की .


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