परशुराम Parushram Part-Z
परशुराम के पिता जमदग्नि थे , अब आप परशुराम के जन्म की कहानी सुनिए
राजा पुरुरवा के वंश के आठवी पीड़ी के राजा थे गाधि, गाधि के पुत्र हुए विश्वामित्र और पुत्री थी सत्यवती ,सत्यवती को मुनि ऋचीक ने मांग लिया था और उससे विवाह कर लिया था। एक बार ऋचीक मुनि की पत्नी और सास ने उत्तम पुत्र प्राप्त करने हेतु ऋचीक से प्रार्थना की तब मुनि ऋचीक ने एक यज्ञ किया उसमे से दो प्रसाद निकाल कर रख लिया ,एक प्रसाद ऋचीक ने अपनी पत्नी सत्यवती के लिए दूसरा सत्यवती की माँ के लिए था ,सत्यवती की माँ ने यह समझकर की ऋषि ने सत्यवती के लिए उत्तम प्रसाद बनाया होगा अतः सत्यवती का प्रसाद माँ ने खा लिया ,जब यह बात ऋचीक को पता चली तो ऋचीक ने सत्यवती से कहा की तुम्हरा पुत्र कठोर और दंड देने वाला होगा किन्तु ब्राह्मणों की रक्षा करने वाला होगा और तुम्हारी माँ का पुत्र ब्रह्मज्ञानी होगा। यही ब्रम्हज्ञानी पुत्र विस्वामित्र कहलाया। इसपर सत्यवती ने ऋचीक से प्रार्थना की कि ऐसा न हो ,तब ऋचीक ने कहा की पुत्र के बदले तुम्हारे पुत्र के पुत्र को यह गुण प्राप्त होंगे ,इस प्रकार सत्यवती के पौत्र [पुत्र का पुत्र ] दंड देने वाला परशुराम हुआ। समय गुजरने पर सत्यवती के पुत्र जमदग्नि का जन्म हुआ। रेणु ऋषि की कन्या थी रेणुका ,रेणुका का विवाह जमदग्नि से हुआ ,रेणुका के 10 पुत्रों में से सबसे छोटे पुत्र ही परशुराम हुए। परशुरामजी ने हैहयवंश के क्षत्रियों का विनाश किया .उस समय क्षत्रिय तमो व् रजो गुणी हो गए थे और ब्राह्मणों की सेवा करना भूल कर अपमान करना प्रारम्भ कर दिया था .उनमे से एक था अर्जुन जिसने भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर हजार भुजा [वाहू ]प्राप्त कर ली थी जिससे वह राजा सहस्त्रवाहु कहलाया ,इसे दत्तात्रेय से बरदान प्राप्त था की कोई इसे हरा नही पायेगा ,योग की शक्ति प्राप्त की थी सहस्त्रवाहु ने एक बार नदी नहाते समय इसने नदी के प्रवाह को रोक दिया जिससे नदी का पानी वापस जाने लगा और पीछे बाढ आ गई .नदी के उस तरफ जिधर बाढ आ गई थी रावन की वस्ती थी जिसमे वे सब डूबने लगे यह जानकार रावण सहस्त्रवाहु की तरफ आया और कहा कि किसने नदी के जल को रोक दिया है .रावन के बुराभाला कहने पर सहस्त्रवाहु ने रावन को बंदी बना लिया और बंदर की तरह कैद कर अपनी राजधानी महिष्मती ले आया .पुलत्ष्य ऋषि के कहने पर रावण को सहस्त्रवाहु अर्जुन ने छोड़ दिया था .
एक बार राजा सहस्त्रवाहु अर्जुन शिकार खेलते हुए जमदग्नि मुनि के आश्रम तक पहुच गया .जमदग्नि मुनि ने सहस्त्रवाहु अर्जुन की खूब सेवा की राजा के मंत्रियो और सेनिको को भोजन पानी दिया गया ,जमदग्नि मुनि के आश्रम पर कामधेनु नामक गाय थी इस गाय से सभी तरह के भोज्य पदार्थ मिलते थे जो कभी कम न होते थे इस कारण जमदग्नि मुनि का ऐश्वर्य देखकर सहस्त्रवाहु को इर्ष्या हो गई मैं राजा होकर भी इतना ऐश्वर्य शाली नही हूँ जितना की मुनि है ,मुनि के ऐश्वर्य का कारण कामधेनु गाय ही थी .मुनि के सादर सत्कार के बाद भी राजा ने कामधेनु गाय को खुद अपने पास रखने का निश्चय किया राजा सहस्त्रवाहु अर्जुन ने अभिमान के कारण मुनि से गाय मांगी नही अपितु अपने सनिकों को आज्ञा दी कि वे गाय को अपने साथ ले चले और मुनि की गाय छीन कर राजा अपने साथ ले आया .
जब परशुराम जी आश्रम पर आये और देखा की कामधेनु आश्रम पर नही है तब उन्होंने अपने पिता जमदग्नि से पूछा की कामधेनु कहाँ है ?मुनि ने राजा की सब दुष्टता की बात बताई इस पर परशुराम जी सीधे राजा की राजधानी की ओर चल दिए ,राजा अभी अपने महल में पंहुचा तक नही था की परशुराम जी आ गए और राजा को ललकारा इस पर राजा ने परशुराम जी से युद्ध प्रारम्भ कर दिया ,परशुराम जी अकेले राजा की पूरी सेना नष्ट कर दी भयंकर युद्ध हुआ और अंत में सहस्त्रवाहुअ मारा गया .राजा के मर जाने के बाद उसके पुत्र डरकर भाग गए .परशुराम जी अपनी कामधेनु को वापस ले आये .परशुराम के पिता ने परशुराम को समझाते हुए कहा की ब्राह्मणों का काम क्षमा करना है युद्ध करना नही ,भगवान् ब्रह्मा जगत में इसीलिए पूज्य है की वे क्षमाशील है.
एक बार मुनि ने अपनी पत्नी रेणुका को गंगा के तट पर जाने को कहा और कुछ मंगाया ,जब रेणुका गंगा तट पर गई तो वंहा उन्हें गंगा जी के तट पर गंधर्व चित्ररथ और कुछ अप्सरायें दिखी जो गंगा किनारे विहार कर रही थी। रेणुका उन्हें देखने लगी और आश्रम पर वापस आने में देर कर दी ,इस पर जमदग्नि मुनि बहुत क्रोधित हुए और अपने सभी पुत्रो को आदेश दिया कि अपनी दुष्ट माँ रेणुका का सिर काट दे लेकिन कोई पुत्र इस काम के लिए तैयार न हुआ तब परशुराम जी तैयार हो गए क्योकि परशुराम जी जानते थे की मुनि जमदग्नि के पास कोई शक्ति होगी जिससे वे माँ को जीवित कर देंगे , परशुराम जी ने अपनी माँ रेणुका का सिर काट दिया था। साथ में अपने सभी भाइयो का भी सिर काट दिया। जमदग्नि मुनि ने खुश होकर परशुराम जी वर मांगने को कहा परशुराम जी ने कहा की मेरे सभी भाइयो सहित माँ को पुनः जीवत कर दिया जाय , और मेरे भाइयो तथा माँ को यह याद न रहे की क्या क्या हुआ था। मुनि ने सभी को फिर से जीवत कर दिया और भाइयो तथा माँ को कुछ भी याद न रहा कि उनके साथ क्या हुआ था।
एक बार जमदग्नि मुनि योग साधना में थे कि सहस्त्रवाहु के पुत्रो ने अपने पिता का बदला लेने के लिए मुनि पर हमला कर दिया और जमदग्नि मुनि का सिर काट ले गए उस समय परशुराम जी कही गए हुए थे जब वे वापस आये तो सहस्त्रवाहु के पुत्रो की दुष्टता की बात सुनी कि कैसे उनके पिता का सिर काट दिया गया है वे सीधे महिष्मति राज्य में गए और सहस्त्रवाहु के पुत्रो मार दिया ,इस तरह से जब भी क्षत्रिय अधर्म करते परशुराम जी उन्हें म्रत्यु दंड देते। ऐसा उन्होंने 21 बार किया और पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया।
एक बार जमदग्नि मुनि योग साधना में थे कि सहस्त्रवाहु के पुत्रो ने अपने पिता का बदला लेने के लिए मुनि पर हमला कर दिया और जमदग्नि मुनि का सिर काट ले गए उस समय परशुराम जी कही गए हुए थे जब वे वापस आये तो सहस्त्रवाहु के पुत्रो की दुष्टता की बात सुनी कि कैसे उनके पिता का सिर काट दिया गया है वे सीधे महिष्मति राज्य में गए और सहस्त्रवाहु के पुत्रो मार दिया ,इस तरह से जब भी क्षत्रिय अधर्म करते परशुराम जी उन्हें म्रत्यु दंड देते। ऐसा उन्होंने 21 बार किया और पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया।
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