नारायण और ब्रह्मा -NARAYAN & BRHMA Part AC
सृष्टि के जन्म से पूर्व यह पूरा ब्रह्नाण्ड जल में डूबा था। .उस समय केवल श्री नारायण देव जी शेष नाग की कुंडली पर आसान लगाए योगनिद्रा में थे। अपने नेत्र बंद किये हुए वे सृष्टि कर्म से अवकाश लिए अपनी आँखे बंद कर आत्मानंद में थे। जिस प्रकार लकड़ी अपनी अग्नि लकड़ी में छुपाये रखती है वैसे ही श्री हरि अपनी शक्ति अपने आप में ही निहित किये हुए थे। उनके किसी क्रिया का संपादन नहीं था।
जब उन्ही के द्वारा नियुक्ति काल शक्ति ने जीवो के उत्पन्न होने के लिए प्रेरित किया तब उन्होंने अपने ही शरीर में अन्य जीवो को देखा ,जो सूछ्म रूप में या बीज रूप में उनके ही शरीर में थे। जिस समय भगवान् की दृष्टि अपने में निहित लिंग शरीर आदि सूछ्म तत्व पर पड़ी ,तब वह काल के आश्रित रजोगुण से युक्त होकर सृष्टि रचनाकार श्री हरि की नाभि[NAVEL] से एक नाल [CORD ] निकली। यह सूछ्म तत्व ऊपर की और उठता हुआ आगे बढ़ा और उसने सूर्य के समान दिव्य प्रकाश से जल को आलोकित कर दिया। और वह जल के ऊपर आकर एक कमल के रूप में खिल गया।
श्री हरि के शेषनाग के फन हज़ारो उल्का पिंड के समूह लग रहे थे और शेषनाग के फनो पर रखे हुए मुकुट पर लगी मणियाँ हज़ारो सूर्य की तरह चमक रही थी। इस जल से बाहर एक कमल खिला था ,जिसकी नाल श्री हरी की नाभि [navel ] से जुडी थी। इस कमल में सम्पूर्ण लोको को प्रकाशित करने वाले श्री विष्णु जी अन्तर्यामी रूप से प्रवेश कर गए ,अब इस कमल में विष्णु निहित हो गए अर्थात कमल के शरीर में अदृश्य रूप से सम्मिलित हो गए.
फिर इस कमल से वेद मूर्ति श्री व्रह्मा जी प्रकट हुए ,वे उस कमल पर ही ध्यान लगाकर बैठ गए और सोचने लगे की मै कहा हूँ ,कोन हूँ ?फिर उन्होंने चारो दिशाओ को देखा ें चार दिशाओ में देखने के कारण ही उनके चार मुँह हो गए ,ब्रह्मा जी कमल के उपर बैठे थे ,कमल जल में था ,ब्रह्मा जी को इस जल के नीचे क्या है कुछ पता न था ,फिर उन्होंने कमल को देखा और अनुमान लगाया की कमल के नीचे कोई आधार होगा जिस पर यह कमल स्थिर है.
अतः वे पहले इस कमल में प्रवेश कर गए और इसकी नाल में घुस कर अन्त पता करने चल दिए न तो इस नाल का आधार मिला न जल का कोई अन्त मिला ,वे जहां तक गए उन्हें नाल समाप्त होते न दिखी और अन्त तक जल ही जल मिला ,इस बीच हज़ारो दिव्य वर्ष बीत गए किन्तु वे नाभि तक न पहुंच सके ,अंत में वे वापस कमल पर ही आ गए और ध्यान करने बैठ गए
हज़ारो दिव्य वर्षो तक वे ध्यान में रहे तब उन्हें ज्ञान मिला और उन्होंने पाया कि वे जिसे खोजने जल में गए थे वह उनके ही अंतःकरण में प्रकाशित है और वे अपने अंतःकरण में ही उस नाल और जल को खोजने लगे । तब उन्होंने जिस नाल के नीचे जिसे खोज रहे थे पर नहीं मिला वह अधिष्ठाता [श्री नारायण ] उनके ह्रदय में ही बैठा मिला।
ब्रह्मा जी ने देखा की श्री नारायण भगवान जल में शेषनाग पर आसान लगाए बैठे है उनके गले में कौस्तुक मणि की माला है ,शेष नाग के फन जो हज़ारो की संख्या में श्री हरी के ऊपर पेड़ो के पत्तो की तरह ऊपर से छाया कर रहे हो ,और उनकी नाभि से एक नाल निकल कर ऊपर जाता है जो एक कमल से जुड़ जाता है ,और यह कमल जल पर खिला हुआ है ,जिस पर वेद के ज्ञाता ब्रह्मा जी स्वयं बैठे है।
ब्रह्मा जी ने यह सब ध्यान और योग से देखा। ब्रह्मा जी को समझ आ गयी थी कि उन्हें अब सृष्टि की रचना करनी है ,क्योकि ब्रह्मा जी ने कमल पर बैठकर केवल वायु ,आकाश,जल ,कमल और अपना शरीर ही देखा था अतः ब्रह्मा जी ने पुनः श्री हरि को समरण किया और उनसे सृष्टि निर्माण की आज्ञा मांगी ,श्री नारायण भगवान् ने ब्रह्मा जी को आशीर्वाद दिया और सृष्टि निर्माण की याद ब्रह्मा को दिलवाई कि तुमने इस कल्प से पहले भी सृष्टि की थी ,तब ब्रह्मा जी ने उस कमल के तीन भाग तीन शब्द बोलकर किये १-भू २-भुवः ३-स्वः और इन्ही तीन शब्दों से ब्रह्मा जी ने तीन लोक बना दिए।
जब उन्ही के द्वारा नियुक्ति काल शक्ति ने जीवो के उत्पन्न होने के लिए प्रेरित किया तब उन्होंने अपने ही शरीर में अन्य जीवो को देखा ,जो सूछ्म रूप में या बीज रूप में उनके ही शरीर में थे। जिस समय भगवान् की दृष्टि अपने में निहित लिंग शरीर आदि सूछ्म तत्व पर पड़ी ,तब वह काल के आश्रित रजोगुण से युक्त होकर सृष्टि रचनाकार श्री हरि की नाभि[NAVEL] से एक नाल [CORD ] निकली। यह सूछ्म तत्व ऊपर की और उठता हुआ आगे बढ़ा और उसने सूर्य के समान दिव्य प्रकाश से जल को आलोकित कर दिया। और वह जल के ऊपर आकर एक कमल के रूप में खिल गया।
श्री हरि के शेषनाग के फन हज़ारो उल्का पिंड के समूह लग रहे थे और शेषनाग के फनो पर रखे हुए मुकुट पर लगी मणियाँ हज़ारो सूर्य की तरह चमक रही थी। इस जल से बाहर एक कमल खिला था ,जिसकी नाल श्री हरी की नाभि [navel ] से जुडी थी। इस कमल में सम्पूर्ण लोको को प्रकाशित करने वाले श्री विष्णु जी अन्तर्यामी रूप से प्रवेश कर गए ,अब इस कमल में विष्णु निहित हो गए अर्थात कमल के शरीर में अदृश्य रूप से सम्मिलित हो गए.
फिर इस कमल से वेद मूर्ति श्री व्रह्मा जी प्रकट हुए ,वे उस कमल पर ही ध्यान लगाकर बैठ गए और सोचने लगे की मै कहा हूँ ,कोन हूँ ?फिर उन्होंने चारो दिशाओ को देखा ें चार दिशाओ में देखने के कारण ही उनके चार मुँह हो गए ,ब्रह्मा जी कमल के उपर बैठे थे ,कमल जल में था ,ब्रह्मा जी को इस जल के नीचे क्या है कुछ पता न था ,फिर उन्होंने कमल को देखा और अनुमान लगाया की कमल के नीचे कोई आधार होगा जिस पर यह कमल स्थिर है.
अतः वे पहले इस कमल में प्रवेश कर गए और इसकी नाल में घुस कर अन्त पता करने चल दिए न तो इस नाल का आधार मिला न जल का कोई अन्त मिला ,वे जहां तक गए उन्हें नाल समाप्त होते न दिखी और अन्त तक जल ही जल मिला ,इस बीच हज़ारो दिव्य वर्ष बीत गए किन्तु वे नाभि तक न पहुंच सके ,अंत में वे वापस कमल पर ही आ गए और ध्यान करने बैठ गए
हज़ारो दिव्य वर्षो तक वे ध्यान में रहे तब उन्हें ज्ञान मिला और उन्होंने पाया कि वे जिसे खोजने जल में गए थे वह उनके ही अंतःकरण में प्रकाशित है और वे अपने अंतःकरण में ही उस नाल और जल को खोजने लगे । तब उन्होंने जिस नाल के नीचे जिसे खोज रहे थे पर नहीं मिला वह अधिष्ठाता [श्री नारायण ] उनके ह्रदय में ही बैठा मिला।
ब्रह्मा जी ने देखा की श्री नारायण भगवान जल में शेषनाग पर आसान लगाए बैठे है उनके गले में कौस्तुक मणि की माला है ,शेष नाग के फन जो हज़ारो की संख्या में श्री हरी के ऊपर पेड़ो के पत्तो की तरह ऊपर से छाया कर रहे हो ,और उनकी नाभि से एक नाल निकल कर ऊपर जाता है जो एक कमल से जुड़ जाता है ,और यह कमल जल पर खिला हुआ है ,जिस पर वेद के ज्ञाता ब्रह्मा जी स्वयं बैठे है।
ब्रह्मा जी ने यह सब ध्यान और योग से देखा। ब्रह्मा जी को समझ आ गयी थी कि उन्हें अब सृष्टि की रचना करनी है ,क्योकि ब्रह्मा जी ने कमल पर बैठकर केवल वायु ,आकाश,जल ,कमल और अपना शरीर ही देखा था अतः ब्रह्मा जी ने पुनः श्री हरि को समरण किया और उनसे सृष्टि निर्माण की आज्ञा मांगी ,श्री नारायण भगवान् ने ब्रह्मा जी को आशीर्वाद दिया और सृष्टि निर्माण की याद ब्रह्मा को दिलवाई कि तुमने इस कल्प से पहले भी सृष्टि की थी ,तब ब्रह्मा जी ने उस कमल के तीन भाग तीन शब्द बोलकर किये १-भू २-भुवः ३-स्वः और इन्ही तीन शब्दों से ब्रह्मा जी ने तीन लोक बना दिए।
क्रमशः
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