पृथु और इंद्र Prathu & Indra Part AJ

पृथु ने इस पृथ्वी को मानव जीवन के अनुकूल बनाया ,पहाड़ो को तोड़कर समतल किया ,कृषि योग्य वातावरण बनाया और मनुष्य को अभय किया ,मानव की भूख के लिए वनस्पतियो का उपयोग किया और गावों की रचना की वेदो को आत्मसात करके यज्ञो को पूर्ण करवाया ,ओषधियो का पता किया जैसे गौ पालक गौ का दूध निकलता है वैसे ही पृथ्वी के भंडार को पृथु ने मानव उपयोग में लिया ,पृथु की कीर्ति संसार में बढ़ती ही जा रही थी इससे घबराकर इंद्र को परेशानी हुई। इंद्र को लगा की अब इंद्र की कोई अब याद नहीं करेगा संसार में सभी कार्य बिना इंद्र के भी हो सकेंगे ऐसा पृथु ने कर दिया है ,इंद्र पृथु के कर्यो में चुपके से बिध्न डालने लगा। पृथु के पुत्र का नाम था बिजिताश्व जो बहुत ही प्रतापी और शक्तिशाली था। 

एक दिन राजा पृथु अपना अंतिम और 99बां यज्ञ कर रहे थे इंद्र ने  पाखंडी धर्मिक वेष पहनकर यज्ञ में आया, जिससे उसे कोई पहचान न सके और चुपके से पृथु के यज्ञ के यज्ञ पशु को चुरा लिया। किन्तु अत्रि ऋषि ने इंद्र को पहचान लिया। अत्रि के कहने पर पृथु का पुत्र बिजिताश्व ने उस पाखंडी वेश धारी का पीछा किया और इंद्र को पकड़ने की कोशिस की लेकिन यह सोच कर जाने दिया की यह तो कोई धर्मात्मा है जो यज्ञ में आया था इसलिए कोई बाण नहीं मारा , पर अत्रि ने कहा इसे पकड़ लो इसने तुम्हारे  यज्ञ का यज्ञ पशु चुरा लिया है। तब बिजिताश्व ने कहा  "पकड़ो पकड़ो, चोर चोर "इंद्र ने देखा कि  बिजिताश्व उसका पीछा कर रहा है वह घोड़े को वही छोड़कर गायब हो गया ,यज्ञ के घोड़े को यूप से बांध दिया गया। 

अबकी इंद्र ने चारो और अँधेरा ही अँधेरा कर दिया और  गले  में हड्डियों की माला और जटाजूट वेश पहनकर कपालियों के वेश में  अत्रि ऋषि की दृष्टि से बचकर आया  लोगो ने उसे जाने दिया और रोका नहीं क्योकि लोगो ने समझा की यह तो कोई साधक लगता है और घोड़े को फिर से इंद्र ने चुरा लिया। अत्रि ने फिर भी इंद्र को पहचान लिया और कहा   "पकड़ो पकड़ो, मार डालो ,मार डालो" बिजिताश्व ने फिर इंद्र का पीछा किया दोनों में युद्ध हुआ इंद्र घोड़े को छोड़कर फिर गायब हो गया। 

राजा पृथु को इंद्र पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने इंद्र को मारने के लिए बाण चलाया किन्तु ऋत्विजों और यज्ञिकों के कहने पर पृथु ने इंद्र को नहीं मारा। ऋत्विजों और यज्ञिकों ने कहा की हम यज्ञ में जिसे भोग लगाते है वह इंद्र ही है हम जिन देवताओ को यज्ञ से प्रसन्न करते है वे देवता ही इंद्र है अतः इन्हे मारना अनुचित है ,ऐसा कहकर पृथु ने इंद्र को छोड़ दिया और मारा नहीं। इन्द्र ने भी राजा पृथु को आशिर्बाद दिया और प्रजा के लिए पृथ्वी के लिए सहयोग देने का बचन दिया। 

जिन वेषो को धारण कर इंद्र यज्ञ का घोडा चुराने आया था वह वेष ही पाखंड वेष कहलाये और इंद्र के इन्ही वेषो को पहन कर अधर्म में धर्म का भ्रम पैदा किया जाता है। गले में हड्डियों की माला पहने ,मोती की माला ,त्रिपुण्ड धारी,जटाजूटधारी ,जो धर्म तत्व का महत्व तो जानते नहीं पर वेष से ऐसे लगते है जैसे ये धार्मिक साधु संत हो। इंद्र के इसी वेष से पाखंड धर्म का उदय हुआ है। 











































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