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Showing posts from May, 2020

राजा ऋषभ और भरत King Rishabh & Bharat Part AM

अब हम राजा ऋषभ के बारे में जानते है  मनु के पुत्र प्रियव्रत ,प्रियव्रत के पुत्र आग्नीघ्र ,आग्नीघ्र के पुत्र नाभि और नाभि के पुत्र हुए ऋषभ ,इसी वंश में आगे राजा भरत हुए है जिनके नाम से इस देश का नाम भारत हुआ है। अब आप राजा ऋषभ की कहानी सुने। राजा नाभि के कोई संतान न थी इसलिए उन्होंने पत्नी मेरु देवी के सहित भगवान यज्ञ पुरुष की आराधना की ऋत्वजो ने यज्ञ आदि किये भगवान की प्रार्थना की ,प्रसन्न होने पर भगवान ने स्वयं ही उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया . जो ऋषभ कहलाये। यह भगवान श्री हरि का एक अवतार हुआ। ऋषभ देव अजनाभ खंड [  जो बाद में भारत वर्ष  कहलाया ] के राजा हुए। इनका विवाह इंद्र की कन्या जयंती से विवाह हुआ। जिससे 100 पुत्रो का जन्म हुआ। इनमे सबसे बड़े पुत्र का नाम भरत था। भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत वर्ष हुआ। जयंती के 81 पुत्र वेद पाठी और भगवत भक्ति में डूबे रहने के कारण ब्राह्मण हो गए थे। शेष 9 पुत्र ही राजा  हुए और शासन में सहयोग करते थे। राजा ऋषभ एक बार अपने भगवत भक्त पुत्रो को [जो ब्रह्म प्रदेश में तपस्या के लिए चले गए थे ] शिक्षा देने के लिए आय...

प्रियव्रत और रेवत ,तामस ,उत्तम मन्वन्तर Priyavrat Dynasty Part AL

स्वयंभू मनु के दो पुत्र थे उत्तानपाद और प्रियव्रत ,उत्तानपाद के बारे में पिछले Part AK में जाना था ,अब प्रियव्रत के वंश के बारे में जानते है। प्रियव्रत  की दो पत्नी थी जिसमे एक का नाम था बहिर्ष्मती ,बहिर्ष्मती विश्वकर्मा की पुत्री   थी ,विश्वकर्मा  की एक पुत्री जिसका नाम  संज्ञा था का विवाह विवस्वान से हुआ था ,विश्वकर्मा देवताओं के वास्तुकार थे,अर्थात वे महल, किला ,भवन और मायानगरी के निर्माता थे , प्रियव्रत की पत्नी  बहिर्ष्मती से 10 पुत्र हुए और एक कन्या हुई। उनके नाम 1- आग्नीघ्र    2 -इध्मजिन्ह  3-यञबाहु   4 -महावीर  5 हिरण्यरेता  6 -घृतपृष्ठ  7 -सवन  8-मेधातिथि   9-वीतिहोत्र   10 -कवि। इन दस पुत्रो के अतरिक्त एक पुत्री भी थी जिसका नाम ऊर्जस्वती था ,जिसका विवाह असुरो के गुरु शुक्राचार्य से हुआ था।   प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम ,तामस ,रैवत ये तीन पुत्र हुए जिनके नाम से तीन मन्वन्तरों के नाम हुए। मन्वन्तर समय की माप के लिए युग से बड़ी इकाई को कहते है। प्रथम ...

पृथु का वंश Dynasty of Prathu Part AK

पृथु का वंश या ध्रुव का वंश एक ही है , स्वयंभू म नु के दो पुत्र थे प्रियव्रत और उत्तानपाद।  उत्तानपाद के दो पुत्र हुए ध्रुव और उत्तम।  ध्रुव के पुत्र हुए कल्प और वत्सर ।  वत्सर के    पुष्पार्ण , तिग्मिकेतु  इष ,ऊर्ज वसु   और  जय  नामक 6 पुत्र हुए।    पुष्पार्ण के प्रदोष  ,निशीथ और     व्युष्ट   ये ।   व्युष्ट के   चक्षु।   चक्षु     से   उल्मुक ।  उल्मुक   से  अंग।  .अंग से वेन ।  वेन से पृथु ।  पृथु से विजिताश्व ,व्रक ,द्रविण हर्यक ,धूम्रकेश 5 पुत्र हुए ।  विजिताश्व की दो पत्नी थी शिखंडनी से पावक ,पवमान ,शुचि 3 पुत्र हुए।  दूसरी पत्नी नभस्वति से हविर्धान नामक पुत्र हुआ।   हविर्धान से बहिर्षद ,गए ,शुक्ल ,कृष्ण ,सत्य ,जितवृत नामक 6 पुत्र हुए।   बहिर्षद   को ही प्राचीनबहेिृ नाम से जानते है।   प्राचीनबहेिृ का विवाह समुद्र की पत्नी शतुद्रित से हुआ था। ...

पृथु और इंद्र Prathu & Indra Part AJ

पृथु ने इस पृथ्वी को मानव जीवन के अनुकूल बनाया ,पहाड़ो को तोड़कर समतल किया ,कृषि योग्य वातावरण बनाया और मनुष्य को अभय किया ,मानव की भूख के लिए वनस्पतियो का उपयोग किया और गावों की रचना की वेदो को आत्मसात करके यज्ञो को पूर्ण करवाया ,ओषधियो का पता किया जैसे गौ पालक गौ का दूध निकलता है वैसे ही पृथ्वी के भंडार को पृथु ने मानव उपयोग में लिया ,पृथु की कीर्ति संसार में बढ़ती ही जा रही थी इससे घबराकर इंद्र को परेशानी हुई। इंद्र को लगा की अब इंद्र की कोई अब याद नहीं करेगा संसार में सभी कार्य बिना इंद्र के भी हो सकेंगे ऐसा पृथु ने कर दिया है ,इंद्र पृथु के कर्यो में चुपके से बिध्न डालने लगा। पृथु के पुत्र का नाम था बिजिताश्व जो बहुत ही प्रतापी और शक्तिशाली था।  एक दिन राजा पृथु अपना अंतिम और 99बां यज्ञ कर रहे थे इंद्र ने  पाखंडी धर्मिक वेष पहनकर यज्ञ में आया, जिससे उसे कोई पहचान न सके और चुपके से पृथु के यज्ञ के यज्ञ पशु को चुरा लिया। किन्तु अत्रि ऋषि ने इंद्र को पहचान लिया। अत्रि के कहने पर पृथु का पुत्र बिजिताश्व ने उस पाखंडी वेश धारी का पीछा किया और इंद्र को पकड़ने की कोशिस...

ध्रुव से पृथुः तक Dhruv to Prathu Part AI

जब ध्रुव जी त्रिलोकी को पार कर सप्त ऋषियों मण्डल से भी ऊपर पहुंच गए तब उनके दो पुत्र उत्कल और वत्सर   को राजपाट देने की बारी आई किन्तु उत्कल पागलो की तरह  व्यबहार करता था उसे राजपाट और भौतिक सुख से कोई मतलब न था वह तो गूंगा और बहरा समझा जाता था न कुछ बोलता न कहता अतः ध्रुव की पत्नी भ्रमि के छोटे पुत्र वत्सर को राजा बना दिया गया। वत्सर की पत्नी का नाम था स्वार्थी ,उससे पुष्पार्ण, तिग्मिकेतु  इष ,ऊर्ज वसु और जय नामक 6 पुत्र हुए।  पुष्पार्ण के प्रभा और दोषा नाम की दो पत्नियां थी। प्रभा के प्रातः ,मध्यान्ह ,और सायं तीन पुत्र हुए। दोषा के प्रदोष ,निशीथ और व्युष्ट ये तीन पुत्र हुए। व्युष्ट ने अपनी पत्नी पुष्करिणी सर्वतेजा  नाम के  पुत्र को जन्म दिया। सर्वतेजा की पत्नी आकूति   से चक्षु नाम के पुत्र का जन्म हुआ।  चक्षु  से ही चाक्षुस मन्वन्त र हुआ। यह 6वां मन्वन्तर [युग]  हुआ। चक्षु मनु की पत्नी नड्वला से पुरु ,कुत्स ,त्रित धुम्न ,सत्यवान, ऋत व्रत ,अग्निष्टोम ,अतिरात्रि ,प्रधुम्न ,शिबि , और उल्मूक ये 12 सत्वग...

ध्रुव Dhruv Part AH

स्वयम्भू  मनु और उनकी पत्नी शतरूपा  के दो पुत्र हुए  प्रियब्रत  औऱ  उत्तानपाद । ये दोनों ही पुत्र भगवन वासुदेव की कला से उत्पन्न होने के कारण ये संसार की रक्षा में तत्पर रहते थे।  प्रियव्रत के दस पुत्र हुए।  उत्तानपद  की दो पत्निया थी  सुनीत  और सुरुचि।राजा उत्तानपाद सुरुचि को अधिक प्रेम करते थे।   सुनीत से ध्रुव  और सुरुचि से उत्तम का जन्म हुआ।  एक बार पुत्र ध्रुव अपने पिता उत्तानपाद के पास खेलने चले गए और अपने पिता की गोद में बैठने लगे तभी दूसरा भाई उत्तम  आया वह भी पिता की गोद में बैठने की जिद करने लगा। पिता उत्तानपाद ने ध्रुव को गोद से हटाकर उत्तम को  अपने गोद में रख लिया इस पर ध्रुव को बहुत दुःख हुआ और वह रोये हुए अपनी माँ के पास पंहुचा।  पुत्र ध्रुव की बात सुनकर माता सुनीत को बहुत दुःख हुआ। सुनीत ने पुत्र को समझते हुए कहा की हम सभी उस परमात्मा की संताने है ,वह परम  पिता परमेश्वर ही सबका पिता हे। ध्रुव को यह बात बहुत जल्दी समझ आ गई ,ध्रुव अब ईश्वर को ही अपना असली पिता मानकर उसे प्राप्त...

शंकर पार्वती और दक्ष Dakxh, Shankar & Parvati Part AG

दक्ष प्रजापति की 16 कन्याएं थी जिनमे से 13 का विवाह धर्म से हुआ ,14 वीं का  अग्नि से,  15 वीं का शंकर से  , 16 वीं को पितृगण को दी गई।  अब शंकर पर्वती के वारे में सुनिए एक बार  प्रजापतियों  के यज्ञ में बड़े बड़े ऋषि मुनि शामिल हुए जिसमे शंकर भगवान भी ने शामिल थे तभी दक्ष प्रजापति ने सभा में प्रवेश किया सभी उन्हें देखकर ब्रह्मा जी और महादेव शंकर को छोड़कर सभी  देवता  हाथ जोड़कर खड़े हो गए ,सभी सभासदो से सम्मान पा कर दक्ष  ने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया और ब्रह्मा जी के आदेश पर दक्ष भी अपने आसन पर बैठ गए , किन्तु  दक्ष ने जब देखा की महादेव शंकर जी उनसे पहले ही बैठे हुए है और शंकर जी से किसी प्रकार का सम्मान न पाकर  दक्ष को क्रोध आ गया और सोचा की मैंने अपनी कन्या इस शंकर को दी है यह मेरा तनिक भी सम्मान नहीं कर रहा है  तब  दक्ष ने भरी सभा में शंकर का अपमान किया और कहा "यह निर्लज्ज शंकर समस्त लोकपालों की इज्जत धूल में मिला रहा है ,देखिये इस घमंडी ने सत्पुरुषों के साथ क्या किया है...

मनु की पुत्रियां Daughter Of Manu Part AF

 सवयंभु मनु की तीन पुत्रियां और दो पुत्र थे 1- प्रियव्रत 2- उत्तानपाद   थे। तीन पुत्रियों के नाम थे।  1- देवहुति 2-प्रसूति 3-आकूति   मनु की पुत्री 1-देवहुति का विवाह कर्दम से हुआ था जिनके बारे में Part AE में बताया गया था अब  मनु की पुत्री 2-प्रसूति  और 3-आकूति बारे में जानिए ,मनु की पुत्री 2 -प्रसूति का विवाह हुआ ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति से जिनसे कुल 16 कन्यायें  हुई ,दक्ष ने 13 का विवाह किया धर्म से ,1 अग्नि से ,1 शंकर भगवान  से ,1 अपने पितृ गण को , धर्म की 13 पत्नियों के नाम 1-श्रद्धा  2-मैत्री  3-दया  4-शांति  5-तुष्टि  6-पुष्टि  7-क्रिया  8-उन्नति  9-बुद्धि  10-मेधा  11-तितिक्षा  12-ह्रीं [hream ]  13-मूर्ति   इन सब के पुत्र हुए  1-श्रद्धा से शुभ   2-मैत्री से प्रसाद   3-दया से अभय   4-शांति से सुख   5-तुष्टि से मोद   6-पुष्टि से अहंकार ...

ॠषि कर्दम Rishi Kardam Part AE

जब ब्रह्मा जी ने देखा कि सप्त ऋषि व् ब्रह्मा के पुत्र आदि सृष्टि के विकास में कुछ अधिक नहीं कर सके है और वंश परम्परा भी आगे नहीं बढ़ा रहे तब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर के दो भाग किये ,दाएं भाग से स्वायम्भुव मनु पति हुए और बाएं भाग से  शतरूपा उनकी पत्नी हुई। मनु और शतरूपा से 5 संताने हुई। 1 -प्रियव्रत 2 -उत्तानपाद 3 -आकूति 4 - देवहुति 5 -प्रसूति 3 -आकूति का विवाह रूचि प्रजापति से किया ,4 -देवहुति का कर्दम से ,-5 -प्रसूति का दक्ष प्रजापति से किया अब आप कर्दम ऋषि की सन्तानो के बारे में समझे कर्दम ऋषि का जन्म ब्रह्मा की छाया [shadow ] से हुआ था  ,कर्दम ऋषि और उनकी पत्नी  देवहुति से एक पुत्र कपिल [सांख्य शास्त्र के रचियता ]और 9 पुत्रियां हुई जिनके नाम निम्न है।  1-कला , 2-अनुसुइया , 3-श्रद्धा , 4-हविर्भू , 5-गति , 6-क्रिया , 7- ख्याति ,8-अरुंधति , 9-शांति , 10-कपिल [पुत्र ] कर्दम ऋषि ने अपनी इन कन्याओं का विवाह Part P में दिए ब्रह्मा के 7 पुत्रो आदि में किया ,जिसमे 1 - कला का विवाह मरीच को 2 -अनुसुइया को अत्रि से 3-श्रद्धा का अंगिरा से 4-ह...

प्रथ्वी और वाराह Earth & Boar Part AD

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जब ब्रह्मा जी ने भूः ,भुवः ,स्वः शब्द कह कर जिस कमल पर बैठे थे उसके तीन भाग कर तीन लोक बना दिए ,ऐसा कर उन्होंने नयी सृष्टि की नीव रची ब्रह्मा जी ने अपने संकल्प से 10 पुत्र उत्पन्न किये उनके नाम हुए   1-मरीच ,2-पुलत्स्य ,3-पुलह ,4-अत्रि ,5-अङ्गिरा ,6-कृत  7 -भृगु 8 -वशिष्ठ 9 -दक्ष  10 - नारद  नारद जी ब्रह्मा की गोद से , दक्ष ब्रह्मा के अंगूठे से ,वशिष्ठ प्राण से ,भ्रगु त्वचा से ,कृत हाथ से ,पुलह नाभि से ,पुलत्स्य कानो से ,अंगिरा मुख से ,अत्रि नेत्रों से ,मरीच मन से हुए। ब्रह्मा के स्तन से धर्म और पीठ से अधर्म का जन्म हुआ , गुदा से पाप और राक्षस के अधिपति या स्वामी निऋति का जन्म हुआ ,मुख  से वाणी की देवी सरस्वती और उनकी छाया [shadow ]से कर्दम ऋषि का जन्म हुआ  ब्रह्मा जी के इतने पुत्र होने पर भी   सृष्टि का उतना विकास नही हो पाया जितना वे चाहते थे अतः उन्होंने अपने शरीर के दो भाग कर दिए एक भाग से प्रथम मनु स्वायम्भुव मनु हुए और दुसरे भाग से शतरूपा हुई।  स्वायम्भुव मनु पति हुए और शतरूपा उनकी पत्नी हुई। स्वायम्भुव मनु ने तब हाथ जोड़कर...

नारायण और ब्रह्मा -NARAYAN & BRHMA Part AC

सृष्टि के जन्म से पूर्व यह पूरा ब्रह्नाण्ड जल में डूबा था। .उस समय केवल श्री नारायण देव जी शेष नाग की कुंडली पर आसान लगाए योगनिद्रा में थे। अपने नेत्र बंद किये हुए वे सृष्टि कर्म से अवकाश लिए अपनी आँखे बंद कर आत्मानंद में थे। जिस प्रकार  लकड़ी अपनी अग्नि लकड़ी में छुपाये रखती है वैसे ही श्री हरि अपनी शक्ति  अपने आप में ही निहित किये हुए थे। उनके किसी क्रिया का संपादन नहीं था। जब उन्ही के द्वारा नियुक्ति काल शक्ति ने जीवो के उत्पन्न होने के लिए प्रेरित किया तब उन्होंने अपने ही शरीर में अन्य जीवो को देखा ,जो सूछ्म रूप में या बीज रूप में उनके ही शरीर में थे। जिस समय भगवान् की दृष्टि अपने में निहित लिंग शरीर आदि सूछ्म तत्व पर पड़ी ,तब वह काल के आश्रित रजोगुण से युक्त होकर सृष्टि रचनाकार श्री हरि की नाभि[NAVEL] से  एक नाल [CORD ] निकली। यह सूछ्म तत्व ऊपर की और उठता हुआ आगे बढ़ा और उसने सूर्य के समान दिव्य प्रकाश से जल को आलोकित कर दिया। और वह जल के ऊपर आकर एक कमल के रूप में खिल गया।  श्री हरि  के शेषनाग के फन हज़ारो उल्का पिंड के समूह लग रहे थे और शेषनाग के ...

आस्तीक ऋषि Asteek Rishi Part AB

सतयुग में दक्ष प्रजापति के 13 पुत्रियां थी उनमे से  एक का नाम  कद्रू दूसरी का नाम विनता था ,इन दोनों पुत्रियों के पति ऋषि कश्यप थे .एक बार ऋषि कश्यप ने अपनी दोनों पत्नियों से खुश होकर कुछ भी मांगने को कहा कद्रू ने कहा की मेरे हज़ार पुत्र हो वे तेज पूर्ण नाग उत्पन्न हो ,विनता ने कहा की मेरे केवल दो ही पुत्र हो और वे श्रेष्ठ हो .इस प्रकार कद्रू के एक हज़ार सर्प हुए और विनता के दो पुत्रो में एक का विनाश हो गया दूसरा गरुण हुआ . यही गरुण विष्णु भगवान का वाहन हुआ .  कद्रू की संताने जो सर्प  थे उनमे वासुकि ,शेषनाग,एलापत्र , तक्षक आदि प्रसिद्ध हुए ,एक बार कद्रू और विनता में शर्त लगी थी इस कारण सभी सर्पो को उच्चैश्रवा घोड़े की पूंछ में चिपकना था और जो सर्प यह काम नही करेगा उसे मरना होगा ऐसा श्राप सर्पो की माँ कद्रू ने दिया था जिसमे कुछ सर्प घोड़े की पूँछ में नही चिपके थे उन्हें अब मरना था ,यह चिंता करते हुए शेषनाग ब्रह्मा जी की तपस्या करने लगे ,शेषनाग जी का तन सुख रहा था ,तपस्या के कारण न वे कुछ खाते और न पीते ,उनकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उनसे कुछ मांगने को कहा शेषनाग ...

शमीक ऋषि &सर्प यज्ञ Sarp Yagya Part AA

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एक बार हस्तिनापुर के  राजा परीक्षित जंगल से होकर जा रहे थे, रास्ते में उन्हें प्यास लगी और वे एक कुटी की तरफ चल दिए वहां उन्हें एक मुनि दिखाई दिए राजा परीक्षित ने मुनि से पानी माँगा किन्तु मुनि मौनी थे वे बोल नही सकते थे,राजा ने कई बार आवाज़ दी पर मुनि कुछ न बोले वे आंखे बंद किये रहे इस पर राजा क्रोध में आ गए और पास में ही एक सांप मरा पड़ा था उसे तीर की नोक से उठाकर उन शमीक मुनि के गले में डाल दिए और अपने महल में वापस आ गए .शमीक ऋषि का पुत्र था श्रङ्गी ऋषि को  यह पता चला तो वे बहुत नाराज हुए और उन्होंने श्राप दिया जिसने भी मेरे पिता शमीक ऋषि के गले में मरा  हुआ सांप डाला है उसे सात दिन में तक्षक नाग डस ले और मार डाले .जब यह बात शमीक ऋषि को पता चली तो वह बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने राजा परीक्षित को सन्देश भिजवाया कि आप की म्रत्यु सात दिन में हो जाएगी अतः आप सतर्क रहे . सातवे  दिन तक्षक नाग  परीक्षित को काटने के लिए चल दिया,रास्ते में   तक्षक को एक ब्राह्मण मिला . तक्षक ने पूछा की तुम कहाँ जा रहे हो ब्राह्मण ने कहा कि मै    परीक्षि...

परशुराम Parushram Part-Z

परशुराम के  पिता जमदग्नि थे , अब आप परशुराम के जन्म की कहानी सुनिए 

Origin of Budh बुध का जन्म Part Y

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                                         बुध का जन्म ================================================ ऋषि अंगिरा  पुत्र वृहस्पति थे ,वृहस्पति की पत्नी तारा थी ,एक कहानी के अनुसार वृहस्पति में उभय लक्षण थे अर्थात वे स्त्री और पुरुष दोनों बन सकते थे। अतः वृहस्पति ही तारा हुए। ऋषि अत्रि के नेत्रों से चन्द्रमा का जन्म हुआ था। चन्द्रमा ब्राह्मणों और ओषधि के स्वामी है। चन्द्रमा ने राजसूय यज्ञ और तीनो लोको पर विजय प्राप्त की थी जिससे उनका घमण्ड बढ गया था . एक बार चन्द्रमा की सुन्दरता देख कर वृहस्पति की पत्नी उन पर मोहित हो गई ,इस पर चन्द्रमा तारा को वृहस्पति से चुरा लाया ,वृहस्पति ने चन्द्रमा को बहुत समझाया पर चन्द्रमा नही माना और चन्द्रमा  ने तारा को वृहस्पति को नही दिया .वृहस्पति के बार बार याचना करने पर भी चन्द्रमा ने वृहस्पति की पत्नी तारा को वृहस्पति को नही लौटाया ,ऐसी परिस्थित में देवताओ और दानवो में युद्ध छिड गया . असुरो के गुरु शुक्राचार्य चन्द्रमा ...

गंगा का अवतरण Origin Of Ganga Part X

                         भगीरथ का स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी लाना पर ======================================================================= इक्ष्वाकु वंशीय राजा सगर बड़े प्रतापी राजा थे उनके दो पत्त्नियां थी .एक का नाम शैव्या दूसरी का नाम वेदर्भी था .वे अपनी पत्नियों सहित हिमालय पर्वत पर योग और तपस्या के लिए गए थे .प्रसन्न होने पर शिव ने बरदान मांगने कहा ,महाराज सगर ने दोनों पत्नियों के पुत्र होने का बरदान माँगा .शिव ने एक पत्नी को साठ हजार पुत्र किन्तु शीघ्र ही नष्ट हो जायेंगे  व दूसरी पत्नी को केवल एक ही पुत्र किन्तु वंश चलाने वाला होगा ऐसा वरदान दिया  .राजा सगर प्रसन्न होकर तपस्या से वापस आ गये.समय गुजरने के बाद  शैव्या से एक बालक का जन्म हुआ .वेदर्भी से एक तुम्बी {लौकी ] का जन्म हुआ .राजा इस फल को फेकने ही जा रहे की आसमान से एक आकाशवाणी हुई की राजन ऐसा साहस न करो ,इसमे तुम्हारे पुत्र है ,इस तुम्बी में जो बीज है वे ही तुम्हारे साठ हजार पुत्र है ,इन बीजो को निकालकर गरम घी में रखो फिर अलग अलग घडो [गा...

उर्वशी और पुरुरवा Part W

विवस्वान के पुत्र मनु , ,मनु के पुत्र इला ,इला के पुत्र पुरुरवा प्रतापी राजा थे ,पुरुरवा से आयु ,आयु से नहुष और नहुष से ययाति का जन्म हुआ था।  अब आप पुरुरवा की कहानी सुने। पुरुरवा का शासन बहुत बड़ा था ,समुद्र के तेरह द्वीपों पर उसका  शासन था किन्तु अमानुषिक कार्यो के कारण इसे सुख के साथ दुःख भी उठाने पड़े ,शास्त्र  इसके सम्बन्ध में दो तरह की कहानी सुनाते  है ,एक कहानी में स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी को एक राक्षस   विमान में  रखकर उर्वशी को उसकी बिना  मर्जी के लिए जा रहा था ,उर्वशी उस  राक्षस से झगड़ा कर रही थी और रो रही थी ,यह देखकर पुरुरवा ने उस  राक्षस को मार दिया और उर्वशी को राक्षस की कैद से मुक्त कर दिया।  पुरुरवा की शक्ति और बल देखकर उर्वशी उस पर मोहित हो गई ,उर्वशी स्वर्ग की अप्सरा थी और पुरुरवा एक मानव था ,उर्वशी को वापस स्वर्ग जाना था किन्तु उसने राजा से शादी कर ली ,स्वर्ग के देवता इंद्र के तथा स्वर्ग के नियम के यह विरुद्ध था ,इस कारण पुरुरवा को दुःख उठाने पड़े एक दिन उर्वशी स्वर्ग के दूतो के कहने पर पुरुरवा को छोड़कर स्वर्ग...

अभिज्ञान शाकुंतलम Part V

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                                                               शकुंतला और दुष्यंत   =============================================================================== राजा नहुष के पुत्र ययाति के की दो पत्नियों में एक देवयानी दूसरी शर्मिष्ठा थी। शर्मिष्ठा से दुह ,अनु और पुरु हुए। पुरु से पुरु वंश का उदय हुआ। अब आप  पुरु वंश  की 18वीं पीढ़ी के राजा  दुष्यंत  की कहानी सुने ,राजा दुष्यंत पुरु वंश के सबसे प्रतापी राजा थे। बहुत से म्लेच्छ प्रदेशो पर इनका अधिकार था। इनके राज्य में कोई वर्ण शंकर न था ,प्रजा सुखी थी समय पर वर्षा होती थी कोई पाप नहीं करता था न कोई चोरी तक नहीं करता था।  एक बार राजा दुष्यंत अपनी चतुरङ्गिनी सेना लेकर जंगल और जा रहे जंगल पार कर लेने के बाद उन्हें एक उपवन दिखाई दिया ,उपवन के वृक्ष हरे थे और उन पर पुष्प और फूल लगे थे जिनसे मधुर सुगंध आ रही थी। उपवन के पास मालिनी नदी बाह रही...

भरत Bharat Part U

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कण्व ऋषि के आश्रम से वापस आकर दुष्यंत हस्तिनापुर में अपना राजकाज देखने लगे।  इधर कण्व ऋषि के आश्रम पर कुछ समय बाद एक बालक का जन्म शकुंतला से हुआ जिसका नाम भरत रखा गया ,भरत बहुत ही वीर और निर्भीक थे ,वे बचपन में ही ऋषि के आश्रम पर खेलते और शेरो को अपने साथ खिलाते ,शेरो के मुँह में अपना हाथ डालकर उसके दांत गिनते और उन्ही  की पीठ पर बैठ कर घोडा बना लेते लेकिन भरत शेरों से डरते नहीं , वर्षो बीत गए अब भरत भी बड़े हो गए थे। अब शकुंतला ने सोचा कि भरत को उनके पिता से मिलाना चहिये अतः उचित समय जान कर शकुंतला भरत को लेकर हस्तिनापुर राजधानी में राजा दुष्यंत से मिलने उसके दरबार  पहुंची और अपना परिचय दिया और सम्मान पूर्वक कहा " राजन मैं शकुंतला हूँ आपकी पत्नी और यह बालक आपका पुत्र है !कृपया इसे स्वीकार करे   इस बालक को आप अपना  युवराज बनाए,और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करे  "  राजा दुष्यंत ने कहा " स्त्री तू कौन है ? और किसकी पत्नी है ? तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे की कि तू स्वयं को राजा की पत्नी बोल रही है और इस बालक को मेरा पुत्र बोल रही ...