Part E Way to heaven
नन्दन वन,अलकापुरी और सुमेरू पर्वत के उत्तर की चोटियो पर सुख पूर्वक रहने के बाद भी तृष्णा की पूर्ति न हो सकी अब उनकी समझ आ गया कि दुनिया के सुख एक मनुष्य को सन्तुष्ट नही कर सकते अत:अपने पुत्र को वुलाकर कहा कि अपना यौवन वापस ले लो पुत्र और अब मै अपने मन को ब्रह्म मे लगाउगां और प्रकृति की शरण मे रहकर मन को वश मे करूगां, पुत्र फिर से युवा होकर राज्य करने लगा और ययाति जगंलों मे तपस्या करने निकल गए, तपस्या से प्रसन्न होकर अष्टक ने राजा की परीक्षा ली और तप, दान ,पुण्य आदि देने का लालच दिया किन्तु राजा ने नीति पर चलते हुए दूसरे के दान पुण्प लेने से अस्वीकार किया तब अष्टक ने कहा कि आप स्वर्ग के अधिकारी है। राजा और अष्टक स्वर्ग जाने वाले रथ मे वैठकर स्वर्ग की यात्रा करने लगे। तेज गति से चलने पर अष्टक ने राजा से पूछा कि यह रथ इतनी तेज कैसे चल रहा है? तब राजा ययाति ने कहा कि यह रथ त्याग, प्रेम, पुण्प, दान, तपस्या, सत्य, धर्म, सेवा, श्रम, क्षमा, ही्ं,श्रीं ,सौम्यता आदि से चलता है यही कारण है कि यह रथ शीध्र स्वर्ग के पथ पर चल रहा है। अब राजा शान्तनु और यदु वंश और पुरू वंश की कहानी सुने। क्रमशः
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