Shakuntla & Dushyant Part T
राजा दुष्यंत
जन्म
पिता
एक बार राजा दुष्यंत अपनी चतुरङ्गिनी सेना लेकर जंगल और जा रहे जंगल पार कर लेने के बाद उन्हें एक उपवन दिखाई दिया ,उपवन के वृक्ष हरे थे और उन पर पुष्प और फूल लगे थे जिनसे मधुर सुगंध आ रही थी। उपवन के पास मालिनी नदी बाह रही थी। दूर तक पृथ्वी पर घास थी ,और पक्षी चहक रहे थे ,उस उपवन के पास एक आश्रम था ,शांतुन उस आश्रम तक गए। यह आश्रम कश्यप गोत्र के कण्व ऋषि का था।
राजा ने अपने मंत्रियों को आश्रम के द्वार पर ही रोक दिया और आश्रम में प्रवेश किया। वहां उस समय कण्व ऋषि उपस्थित नहीं थे। राजा ने जोर से आवाज दी अंदर कौन है ?आवाज सुनकर एक सुंदरी कन्या जो तपस्वनी के वेश थी , बहार निकल कर आयी ,उसने सम्मान पूर्वक राजा का स्वागत किया और परिचय पूछा राजा ने उत्तर दिया " हे तपस्विनी मैं ऋषि कण्व से मिलने के लिए आया हूँ
,सुंदरी ने उत्तर दिया कि कण्व ऋषि इस समय आश्रम से बाहर गए हुए है। शांतुन ने उस कन्या से पूछा कि आप कोन है ? सुंदरी ने कहा मै कण्व की पुत्री हूँ। तब शांतुन ने कहा की विश्वबंधु कण्व तो ब्रह्मचारी है ,सूर्य पूर्व से निकलना छोड़ दे किन्तु कण्व धर्म से विचलित नहीं हो सकते आप कण्व की पुत्री कैसे हो सकती हो ?तब उस सुंदरी ने कहा की मेरा नाम शकुंतला है और मै मेनका अप्सरा की पुत्री हूँ मेरे पिता विश्वामित्र है ,जब ऋषि विस्वामित्र उच्चकोटि की तपस्या कर रहे थे तो इंद्र ने विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए मेनका नाम की अप्सरा को स्वर्ग से भेजा था ,जिससे मेरा जन्म हुआ इस तरह से मेरे पिता विस्वामित्र और माता मेनका है। क्योकि मेनका मुझे वन में पक्षियों [शकुंतो ]के बीच छोड़कर चली गई थी और मुझे इन पक्षियों [शकुंतो ] ने ही पाला था इसलिए मेरा नाम शकुंतला है। एक बार कण्व ऋषि ने मुझे इन पक्षियों से निकाल कर खुद पालन किया अब मैं कण्व ऋषि के आश्रम मे हूँ।
दुष्यंत ने कहा की तुम ब्राह्मण कन्या नहीं हो तुम राजकन्या हो अतः तुम मुझसे गंधर्व विवाह कर लो ,शकुंतला ने कहा की मेरे पिताजी इस समय आश्रम पर नहीं है वे आते ही होंगे आप उनसे पूछ ले। इसपर राजा ने कहा कि शकुंतला अच्छा हो कि तुम ही मुझे वरण कर लो। शकुंतला ने शर्त रखी कि मेरे जीवन काल में ही मेरा पुत्र राजकुमार बने तो मुझे विवाह स्वीकार है ,राजा ने शकुंतला को स्वीकृत दे दी।
राजा दुष्यंत इसके बाद अपनी राजधानी वापस आ गए।
जब कण्व ऋषि आश्रम पर आये तो शकुंतला भयवश और लज्जा के कारण कण्व के सामने नहीं आयी तब कण्व ने ध्यान और योग से पता कर लिया कि राजा दुष्यंत यंहा आये थे। कण्व ने शकंतुला को बुलाकर कहा की राजकन्या को गंधर्व विवाह की अनुमति है तुमने कोई पाप नहीं किया है ,तुमसे जो पुत्र जन्म लेगा वह महान प्रतापी शासक होगा जिसका नाम भरत होगा।
कुछ समय बाद आश्रम पर ही शकुंतला पुत्र भरत का जन्म हुआ। इसी भरत के नाम से भारत देश का नाम भारत हुआ। अब आगे की कथा सुनिए की किस प्रकार राजा शांतुन भरत और शकुंतला को पहचानने से मना करते है और अपनी राजधानी में शकुंतला को अपनाने से अस्वीकार करते है।
कुछ समय बाद आश्रम पर ही शकुंतला पुत्र भरत का जन्म हुआ। इसी भरत के नाम से भारत देश का नाम भारत हुआ। अब आगे की कथा सुनिए की किस प्रकार राजा शांतुन भरत और शकुंतला को पहचानने से मना करते है और अपनी राजधानी में शकुंतला को अपनाने से अस्वीकार करते है।
क्रमशः
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