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Showing posts from April, 2020

Shakuntla & Dushyant Part T

राजा  दुष्यंत जन्म  पिता  राजा नहुष के पुत्र ययाति के की दो पत्नियों में एक देवयानी दूसरी शर्मिष्ठा थी। शर्मिष्ठा से दुह ,अनु और पुरु हुए। पुरु से पुरु वंश का उदय हुआ। अब आप पुरु वंश की 18वीं पीढ़ी के राजा दुष्यंत की कहानी सुने ,राजा दुष्यंत पुरु वंश के सबसे प्रतापी राजा थे। बहुत से म्लेच्छ प्रदेशो पर इनका अधिकार था। इनके राज्य में कोई वर्ण शंकर न था ,प्रजा सुखी थी समय पर वर्षा होती थी कोई पाप नहीं करता था न कोई चोरी तक नहीं करता था।  एक बार राजा दुष्यंत अपनी चतुरङ्गिनी सेना लेकर जंगल और जा रहे जंगल पार कर लेने के बाद उन्हें एक उपवन दिखाई दिया ,उपवन के वृक्ष हरे थे और उन पर पुष्प और फूल लगे थे जिनसे मधुर सुगंध आ रही थी। उपवन के पास मालिनी नदी बाह रही थी। दूर तक पृथ्वी पर घास थी ,और पक्षी चहक रहे थे ,उस उपवन के पास एक आश्रम था ,शांतुन उस आश्रम तक गए। यह आश्रम कश्यप गोत्र के कण्व ऋषि का था।  राजा ने अपने मंत्रियों को आश्रम के द्वार पर ही रोक दिया और आश्रम में प्रवेश किया। वहां उस समय कण्व ऋषि उपस्थित नहीं थे। राजा ने जोर से आवाज दी अंदर कौन  ...

Kach & Devyani Part S

ययाति ब्रह्मा के 10वीं पीढ़ी के थे। इनकी शादी देवयानी से हुई थी। देवयानी शुक्राचार्य की पुत्री थी. शुक्राचार्य  असुरो के गुरु  थे।देवताओ के  गुरु वृहस्पति  थे ।  शुक्राचार्य  और वृहस्पति दोनों ही ब्राह्मण थे।   गुरु वृहस्पति के पिता ऋषि अङ्गिरा थे इसीलिए वृहस्पति को आङ्गिरस कहा जाता है।  शुक्राचार्य  और वृहस्पति में पर्तिस्पर्धा  रहती थी कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है। शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या थी जिससे वे मृत व्यक्ति को भी जीवित कर देते थे। शुक्राचार्य राजा  वृषपर्वा के राज्य में रहते थे। जब देवता असुरो को मार डालते तो  शुक्राचार्य उन्हें अपनी संजीवनी विद्या से फिर से जीवित कर  देते। लेकिन देवता अपने मृत योद्धाओं को फिर से जीवित न कर पाते। इससे देवता वृहस्पति के पुत्र कच के पास गए और उपाय की खोज करने लगे की किस तरह से  शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या प्राप्त की जाय। देवताओ की बात सुनकर कच तैयार हो गए और वे  शुक्राचार्य  के पास गए। कच ने  शुक्राचार्य  से ...

Vivshvan- Part RS

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विवस्वान का अर्थ है सूर्य। आइये अब विवस्वान के बारे में जानते है जैसा कि आप जानते है ब्रह्मा के पुत्र मरीच ,सप्त ऋषियों में से एक थे। मरीच के पुत्र कश्यप थे। इन्ही कश्यप की 13 पत्नियों में से एक अदिति थी। अदिति के 12 आदित्य [पुत्र ]हुए। जिनमे से एक इंद्र और एक विवस्वान थे , विवस्वान की पत्नी संज्ञा थी।  संज्ञा के पिता विश्वकर्मा थे। और यही विश्वकर्मा देवताओ के वास्तुकार थे।   विश्वकर्मा की दूसरी पुत्री बहिर्ष्मती का विवाह प्रियव्रत के साथ हुआ था।  विवस्वान और संज्ञा से एक कन्या यमुना तथा दो पुत्र  वैवस्वत मनु और यम हुए। वैवस्वत मनु ही हमारे मनु है। मनु ने ही इस सृष्टि का निर्माण किया। समय के अनुसार कुल 14 मनु हुए है ,वर्तमान मनु का नाम वैवस्वत मनु है। कुल 14 मनु का नाम है - 1 -स्वयंभू मनु 2 -स्वरोचित मनु  3 -उत्तम मनु  4 -तामस मनु  5 -रेवत मनु  6 -चाक्षुसी  मनु 7 - वैवस्वत मनु 8 -सावर्णि मनु 9 -दक्ष-सावर्णि मनु १०-व्रह्म -सावर्णि मनु 11 -रूद्र -सावर्णि मनु 12 -देव -सावर्णि मनु ...

7 Son Of Brahma Part P

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 प्रजापति ब्रह्मा के  7 पुत्र हुए जिनके नाम इस प्रकार है।  1-मरीच ,2-पुलत्स्य ,3-पुलह ,4-अत्रि ,5-अङ्गिरा ,6-ऋतु, 7-स्थाणु।    मरीच के पुत्र कश्यप थे,कश्यप से ही सभी मानव जाति  बनी ,हम सब कश्यप की ही संतान है। ,कश्यप की चार पत्निया थी  1 -अदिति 2 -,कद्रू 3 -,विनता ,4 -मुनि । [1 ]अदिति से 12  आदित्य [पुत्र [ हुए  1-धाता ,2-मित्र ,3-अर्यमा ,4-शक्र [इंद्र ],5-वरुण ,6-अंश ,7-भग ,8-विवस्वान ,9-पूषा ,10-सविता ,11-त्वष्टा ,12-विष्णु।   कश्यप  की पत्नी   मुनि  [4 ] के भीमसेन ,उग्रसेन ,सुपर्ण नारद और 16 गंधर्व  हुए थे।  पुलत्स्य  की संताने ही रावण, कुम्भकरण,, सूपर्णखा अदि असुर कुल कहलाया। पुलत्स्य की  पत्नी ऋषि  कर्दम  की पुत्री  हविर्भू   थी।  पुलत्स्य  के दो पुत्रो का नाम ऋषि  1 - अगस्त 2 -विश्रवा  था. विश्रवा की दो पत्नी थी  1 -इडविडा  जिससे  कुबेर और विभीषण  का जन्म हुआ ,इडविडा सम्राट तृणविंदु की पुत्री थी इडविडा ...

Part N- Bhakt Prahalad

ब्रह्मा की 13 पुत्रियां थी जिसमे एक  का नाम दिति था ,दिति के पुत्र का नाम हिरण्यकश्यप था     हिरण्यकश्यप  असुर जाति का था।  जिसकी पत्नी  का नाम कयाधु था। हिरण्यकश्यप के पांच पुत्र हुए प्रह्लाद सँहाद ,अनुहाद, शिबि ,और वाष्कल था ।प्रह्लाद एक अद्भुत बालक था जो विष्णु का भक्त था।  प्रह्लाद के तीन पुत्र थे विरोचन ,कुम्भ,निकुम्भ।विरोचन के पुत्र का नाम बलि और बलि के पुत्र का नाम बाणासुर था। वाणासुर भगवन शंकर का भक्त हुआ। वाणासुर ही महाकाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद के पिता विष्णु भगवान  से द्रोह करते थे और विष्णु की निंदा करते थे। प्रह्लाद को यह अच्छा न लगता। प्रह्लाद ने अपने पिता को बहुत समझाया किन्तु हिरण्यकश्यप न माने बदले में वे प्रह्लाद को हरी अर्थात विष्णु का नाम लेने पर पुत्र को दंड देते। हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में घोषणा कर दी थी कि  कोई हरी या विष्णु का नाम नहीं लेगा। प्रह्लाद को अपने पिता का यह शासन अच्छा न लगा। हिरण्यकश्यप  के बार बार मना करने पर भी प्रह्लाद जब नहीं माने तो हिरण्यकश्यप ...

Part L-Ved Vyas & Mahabarat

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वेद व्यास ने ही महाभारत की रचना की थी ,वेद व्यास का पूरा नाम श्री कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास था ,व्यास जी वेदो के ज्ञाता और संहिताओं के निर्माता थे ,महाभारत जिसे जय सहिंता भी कहा जाता है के रचियता थे,महाभारत में नहीं है वह कही भी नहीं है सम्पूर्ण ज्ञान को वेद व्यास जी ने महाभारत में संकलित किया है। विश्व की रचना और मानव वंश का सम्पूर्ण संकलन है। व्यास जी कहते है की पहले संसार में एक अंडा था और पूरे ब्रह्माण्ड में अन्धकार के सिवाय कुछ न था। ..इस अंडे केफूटने पर  इसमें से ब्र्ह्मा जी  का जन्म हुआ। ब्रह्मा जी से दक्षः प्रजेता ,7 पुत्र ,7 ऋषि ,14 मनु ,13 कन्याएँ  ,विवस्वान के 12 पुत्र ,हुए। इन 14 मनुओ में वेवस्वतु मनु ही हमारे वास्तविक मनु है ,काल गणना के अनुसार एक कल्प में 14 मन्वन्तर होते है। हमारा सातवाँ मन्वन्तर चल रहा है इसके स्वामी या रचनाकर वेवस्वतु मनु ही है।  वेवस्वतु मनु ,विवस्वान के पुत्र थे ,विवस्वान का अर्थ है सूर्य ,इस प्रकार मनु सूर्य के पुत्र थे। हम सब मनु की ही संताने है ,मनु से ही MAN ,मानव ,आदम और आदमी बना है। इन शब्दों पर मनु का ही प्...

Part K- Mahrishi Ved Vyas

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स्वर्ग में अद्रिका नाम की एक अप्सरा थी किसी कारण से उसे श्राप मिला कि  वह मछली का जन्म लेगी ,सत्यवती इसी मछली के उदर से उत्त्पन्न हुई थी ,एक बार निषादो की बस्ती में कुछ मछुआरों को एक विशेष मछली यमुना में मिली जिसके पेट से एक बालक और एक बालिका प्राप्त हुई ,बालक को तो निषादराज ने अपने पास रख लिया और कन्या को नदी पर नाव  चलाने का काम दे दिया ,एक बार एक ऋषि{पराशर} नदी के उस पार जाना चाहते थे तो सत्यबती  ऋषि पराशर को नाव् में बिठाकर उस पार ले चली ,रास्ते में  देखा कि सरस्वती बहुत सुँदर  मालूम पड़ती थी किसी दिव्य स्त्री की तरह किन्तु सत्यवती के शरीर से मछली की दुर्गन्ध आ रही थी इस दुर्गन्ध के कारण सत्यवती को मत्स्यगन्धा कहा जाता था  ,ऋषि पराशर ने सत्यबती से समागम करने का प्रस्ताव दिया किन्तु सत्यवती ऐसा करने से मना कर दिया कि उसे किसी और से विवाह करना है , तब ऋषि ने कहा कि  तुम्हारा कौमार्य भंग नहीं होगा और तुम कुमारी ही रहोगी ,पराशर ने सत्यवती के शरीर से मछली की गंध नष्ट कर दी अब सत्यबती के शरीर से सुगंध आने लगी तब से सत्यवती क...

Part J-Satyavati & king Shantun

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एक बार राजा शांतुन यमुना नदी के किनारे विचरण कर रहे थे उन्हें एक अनुपम सुगंध का अनुभव हुआ. वे उस सुगंध की तरफ चल दिए , यह सुगंध सत्यवती के शरीर से आ रही थी ,जो उसे ऋषि पाराशर से प्राप्त हुई थी.आगे चलने पर राजा शांतुन को वह स्त्री दिखाई दी  , शांतुन ने उससे पुछा की आप कौन है ? स्त्री  ने उत्तर दिया की वह निषाद की कन्या हे और पिता के कहने पर नदी में नाव चलाती हे,शांतुन ने उस स्त्री से विवाह का प्रस्ताव रखा ,सत्यवती ने राजा से कहा की में अपने पिता की  अनुमति के विना कुछ नहीं कह सकती इस पर शांतुन ने सत्यवती के पिता निषादराज से सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव रखा ,निषादराज ने कहा कि  में इस कन्या का विवाह इस शर्त पर कर सकता हूँ कि  इसकी ही संतान भविष्य में  राजा बने किन्तु शांतुन बिना सहमति दिए वापस अपने महल आ गए क्योकि वह भीष्म का अधिकार किसी दूसरे को नहीं देना चाहते थे ,शांतुन चाहते थे कि भीष्म ही राजा बने और भीष्म के पुत्र ही राज्य के उत्तराधकारी हो। राजा शांतुन जब से यमुना नदी से निषादराज से मिलकर वापस आये तब से दुखी रहने लगे,भीष्म ने एक...

Part I-Vasu & Vashishth

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  जब गंगा शांतुन को छोड़कर स्वर्ग जाने लगी तब राजा शांतुन ने  गंगा से पुछा की आप स्वर्ग क्यों जा रही है गंगा ने कहा  की राजन मुझे स्वर्ग में देवता भी स्मरण करते है और में देवताओ के कार्यो में सहयोग करती हूँ ,इन आठ वसुओं को स्वर्ग में श्राप मिला था की वे पृथ्वी लोक पर जन्म ले यह श्राप वरुण के पुत्र  वशिष्ट मुनि जो मेरु पर्वत पर रहते थे  ने दिया था,एक बार  पृथु नामक वसु वशिष्ठ के आश्रम पर पत्नी सहित आया ,वशिष्ठ के पास एक गाय थी ,उस गाय का नाम नंदनी था ,नंदनी गाय कामधेनु से यज्ञ आदि की सामग्री लेकर वशिष्ठ को देती थी,पृथु की पत्नी ने पृथु से कहा की आप इस गाय को ले ले ,वसु ने अन्य आठ वसुओं से सलाह कर नंदनी को चुरा लिया नंदनी गाय को धौ नमक वसु ने  चुराया ,जब वशिष्ठ वापस अपने आश्रम पर आये तो देखा की नंदनी नहीं हे ,उन्होंने ध्यान से देखा और पता कर लिया कि  गाय को धौ ने चुराया हे तब वशिष्ठ ने धो और उसके साथी सात भाइयो को श्राप दिया की तुम आठ लोग पृथ्वी पर जन्म लोगे जिसमे धो पृथ्वी पर अधिक समय तक रहेगा और इसके  कोई पुत्र नहीं होगा यही भीष्म बन...

Part H -Ganga Putra Bhishm

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इधर पुरु वंश के राजा प्रतीप गंगा के तट पर अपनी पत्नी के साथ यज्ञ कर रहे थे। तब गंगा अपने सौंदर्य के साथ नदी से बहार आकर प्रकट हुई। गंगा के सौंदर्य को देख कर राजा ने गंगा  से पूछा कि आप कौन   है?गंगा ने कहा की राजन में आपके पुत्र की पत्नी  बनूगी राजा ने गंगा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।राजा प्रतीप के जब महाभिष ने जन्म लिया तो  राजा प्रतीप शांत रहने लगे इस कारण  से महाभिष के रूप में जन्म लेने वाले पुत्र का नाम शांतुन  रखा गया।   राजा प्रतीप जब बृद्ध हो गए तब उन्होंने अपने   पुत्र शांतुन  से कहा की पुत्र भविष्य में यदि कोई अनुपम सुंदरी आये और विवाह का प्रस्ताव रखे तो तुम माना  मत करना वह गंगा होगी।इसके बाद राजा जंगल में तप करने चले गए।  एक दिन ऐसा ही हुआ राजा महाभिष [शांतुन ] के दरबार में एक सूंदर युवती ने प्रवेश किया और शांतुन को उनके पिता के बचन को याद दिलाया।राजा शांतुन ने गंगा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया किन्तु गंगा ने कहा कि  आप मुझसे कोई ऐसी बात नहीं कहेंगे जिससे  में नाराज हो जायूँ यदि ऐसा ...

Part G Dushayant & Ganga

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गंगा जहानह्वी  की पुत्री थी ,स्वर्ग में देवता भी गंगा का स्मरण करते थे,  परन्तु एक दिन इच्छाकु वंस के राजा महाभिष स्वर्ग में देवताओ के साथ एक यज्ञ कर रहे थे तब वायु देवता ने गंगा के अंग से स्वेत वस्त्र उडाने की कोशिश की तब सभी देवताओ ने अपनी आंखे नीची कर ली,किन्यु महाभिष देखते ही रहे तब  ब्रह्मा जी ने महाभिष को श्राप दिया की अब तुम पृथ्वी लोक में ही जाओ और गंगा तुम्हारा अहित करेंगी। जब गंगा इस श्राप को पूरा करने के लिए पृथ्वी पर अवतरति हुई तो आठ वसु भी गंगा को रस्ते में मिल गए और गंगा के साथ साथ चलने लगे गंगा ने पुछा की वसुओं तुम मेरे साथ क्यों चल रहे हो?वसुओ ने कहा की हमें वशिष्ट ने श्राप दिया है । हम आपके पुत्र बनेंगे। गंगा ने स्वीकार किया की हम तुम्हे अपने  पुत्र के रूप में जन्म देकर शीघृ  ही तुम्हे मुक्त कर देंगे इस पर वसुओं ने कहा कि  हम अपने एक एक अंश से एक पुत्र को पृथ्वी पर ही छोड़ देंगे और वह आजीवन निःसंतान रहेगा जो भीष्म के नाम से प्रसिद्ध होगा। क्रमश :

Part F Yadu vansh & Puru Vansh

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ययाति की दो पत्नियां थी देवयानी और शर्मिष्ठा,देवयानी शुक्राचार्य की पुत्री थी उससे दो पुत्र हुए1- यदु 2-तुर्वस यदु से यादव वशं की उत्पत्ति हुई और तुर्वस से यवन की उत्पत्ति हुई, यायाति की दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा जो देवयानी की दासी थी किन्तु राज पुत्री थी उससे तीन पुत्र हुए 1-द्रुह 2-अनु 3-पुरू।।द्रुह से भोज वशं और अनु से म्लेच्छ वंश और पुरू से पौरव वशं की उत्पत्ति हुई, पौरव वंश ही श्रेष्ठ वंश कहलाया क्योकि ययाति ने अपना राज्य पुरू को ही सौपा था आगे चलकर इसी वंश से अर्जुन भीम, अभिमन्यु राजा परीक्षित और जनमेजय का जन्म हुआ, अब आप राजा शान्तनु की कहानी सुनिए। क्रमशः

Part E Way to heaven

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नन्दन वन,अलकापुरी और सुमेरू पर्वत के उत्तर की चोटियो पर सुख पूर्वक रहने के बाद भी तृष्णा की पूर्ति न हो सकी अब उनकी समझ  आ गया कि दुनिया के सुख एक मनुष्य को सन्तुष्ट नही कर सकते अत:अपने पुत्र को वुलाकर कहा कि अपना यौवन वापस ले लो पुत्र और अब मै अपने मन को ब्रह्म मे लगाउगां  और प्रकृति की शरण मे रहकर मन को वश मे करूगां, पुत्र फिर से युवा होकर राज्य करने लगा और ययाति जगंलों मे तपस्या करने निकल गए, तपस्या से प्रसन्न होकर अष्टक ने राजा की परीक्षा ली और तप, दान ,पुण्य आदि देने का लालच दिया किन्तु  राजा ने नीति पर चलते हुए दूसरे के दान पुण्प लेने से अस्वीकार किया तब अष्टक ने कहा कि आप स्वर्ग के अधिकारी है। राजा और अष्टक स्वर्ग जाने वाले रथ मे वैठकर स्वर्ग की यात्रा करने लगे। तेज गति से चलने पर अष्टक ने राजा से पूछा कि यह रथ इतनी तेज कैसे चल रहा है? तब राजा ययाति ने कहा कि यह रथ त्याग, प्रेम, पुण्प, दान, तपस्या, सत्य, धर्म, सेवा, श्रम, क्षमा, ही्ं,श्रीं ,सौम्यता आदि से चलता है यही कारण है कि यह रथ शीध्र स्वर्ग के पथ पर चल रहा है। अब राजा  शान्तनु और यदु वंश और पुरू वंश ...

Part D King Puru

Part D- ययाति देवयानी और शर्मिष्ठा सहित अपने राज्य मे आ गए, देवयानी अन्त:पुर मे और शर्मिष्ठा महल से बाहर एक अशोक वाटिका मे रहने लगी। एक वार ययाति वाहर टहल रहे थे, शर्मिष्ठा ने ययाति से कहा कि आप एक क्षत्रिय है और मै भी एक राजा की पुत्री हूं देवयानी के साथ मैने भी आपको अपना पति स्वीकार किया है अत:आप मुझे पुत्र देने की कृपा करे, ययाति सहमत हो गए, शर्मिष्ठा से तीन पुत्र द्रुह,अनु और पुरू ने जन्म लिया और देवयानी के दो पुत्र हुए यदु और तुर्वसु । जब देवयानी को यह पता चला कि शर्मिष्ठा के तीन पुत्रो के पिता राजा ययाति है तो वह क्रुद्ध होकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास आ गई और राजा की शिकायत अपने पिता से की, शुक्राचार्य ने यह सुनकर राजा को श्राप दिया कि वह अपना यौवन खोकर शीघ्र ही वृद्ध हो जाए और वुढापा आ जाए। राजा को वृद्धावस्था मे आना पडा और दुखी हुआ। राजा ने शुक्राचार्य से प्रार्थना की वह अभी देवयानी के साथ वैवाहिक जीवन जीना चाहता है अत:उसे युवा कर दिया जाए, शुक्राचार्य ने वरदान दिया कि यदि वह अपने पुत्र से यौवन प्राप्त करे तो उसे फिर से जवानी मिल सकती है। राजा ने देवयानी के दौनो प...

Marriage of Devyani Part C

Part C - ययाति देवयानी को कुएं से बाहर निकाल कर अपने राज्य वापस आ गए। देवयानी ने अपनी दासियों से सूचना भिजवाई कि शर्मिष्ठा से  उसका झगडा हुआ है और शर्मिष्ठा उसे कुऐं मे धकेल कर चली गई थी अत:वह वापस अपने पिता के पास नही जाएगी जबतक कि शर्मिष्ठा को उचित दण्ड न मिल जाए। वस्तुत:शर्मिष्ठा के  पिता शुक्राचार्य   वृषपर्वा  के राज्य मे असुरो के गुरू थे. शुक्राचार्य और देवयानी इन्ही के राज्य मे रहते थे, देवयानी के शिकायत करने पर शुक्राचार्य वृषपर्वा नगर छोड कर चलने को तैयार हो गए, किन्तु शर्मिष्ठा के पिता वृषपर्वा ने माफी मांगी और शुक्राचार्य की स्तुति की और राज्य न छोडने की बात की इस पर देवयानी ने शर्मिष्ठा के सामने शर्त रख दी कि यदि वह दासी वनकर देवयानी के साथ रहती है तो ठीक है, शर्मिष्ठा ने शर्त स्वीकार कर ली, एक बार देवयानी और शर्मिष्ठा वन मे टहल रही थी तब राजा ययाति फिर एक बार मिले, देवयानी ने राजा को याद दिलाते हुए कहा कि आप ने ही सर्व प्रथम मेरा हाथ कुएं से निकालते समय पकडा था अत:आप ही मेरे जीवनसाथी है, अब आप मुझसे विवाह करे। ययाति ने इस पर विचार करते हुए शु...

Yayati & Devyani Part B

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Part B - अब आप राजा ययाति और देवयानी की आगे की कथा सुने कि किस तरह राजा ययाति और देवयानी का विवाह हुआ। राजा ययाति नहुष के पुत्र थे, और ययाति के पुत्र का नाम पुरू था। पुरू के कारण ही पुरू वंश की स्थापना हुई थी। पुरू वह पुत्र था जिसने अपनी जवानी अपने पिता को दी थी, बदले मे राजा ययाति ने पुरू को अपना सम्पूर्ण राज्य दिया था। पुरू की माता का नाम शर्मिष्ठा था। शर्मिष्ठा देवयानी की दासी थी, जब राजा ययाति का विवाह देवयानी से हुआ तो देवयानी के साथ जो कुछ भी था वह सब राजा को अर्पण किया गया था जिसमे स्वयं शर्मिष्ठा ने भी राजा ययाति को अपना मान लिया था। अब राजा ययाति की शादी की कथा सुने महाभारत जिसे जय सहिंता कहा जाता है जिसे वेद व्यास ने लिखा था यह कहानी उसी के अनुसार है। एक बार शर्मिष्ठा और देवयानी किसी नदी के किनारे जल क्रीडा कर रही थी। क्रीडा करने के वाद शर्मिष्ठा पहले जल से बाहर आ गई और उसने देवयानी के वस्त्र पहन लिए, जब देवयानी जल से बाहर आई तो देखा कि उसके वस्त्रो को शर्मिष्ठा ने पहन लिए है इस पर दौनो का झगड़ा हुआ, शर्मिष्ठा ने देवयानी को धक्का देकर एक अन्धे कुएं मे डाल दिया, और शर्...