दक्ष dakxh Part AN
पृथु का वंश या ध्रुव का वंश एक ही है ,स्वयंभू मनु के दो पुत्र थे प्रियव्रत और उत्तानपाद।
उत्तानपाद के दो पुत्र हुए ध्रुव और उत्तम।
ध्रुव के पुत्र हुए कल्प और वत्सर।
वत्सर के पुष्पार्ण, तिग्मिकेतु इष ,ऊर्ज वसु और जय नामक 6 पुत्र हुए।
पुष्पार्ण के प्रदोष ,निशीथ और व्युष्ट ये ।
व्युष्ट के चक्षु। चक्षु से उल्मुक।
उल्मुक से अंग।
.अंग से वेन।
वेन से पृथु।
पृथु से विजिताश्व ,व्रक ,द्रविण हर्यक ,धूम्रकेश 5 पुत्र हुए ।
विजिताश्व की दो पत्नी थी शिखंडनी से पावक ,पवमान ,शुचि 3 पुत्र हुए।
दूसरी पत्नी नभस्वति से हविर्धान नामक पुत्र हुआ।
हविर्धान से बहिर्षद ,गए ,शुक्ल ,कृष्ण ,सत्य ,जितवृत नामक 6 पुत्र हुए।
बहिर्षद को ही प्राचीनबहेिृ नाम से जानते है।
प्राचीनबहेिृ का विवाह समुद्र की पत्नी शतुद्रित से हुआ था।
प्राचीनबहेिृ के पुत्र हुए दस प्रचेता ,दस प्रचेता इस से पहले की 9 स्रष्टि में अपना सहयोग दे चुके थे.चुकीं दस प्रचेता समुद्र में बैठकर तपस्या कर रहे थे जब तपस्या कर चुके तब वे बाहर आये और उन्होंने देखा कि सृष्टि में पेड़ ही पेड़ उग आये है धरती पर तब उन्होंने बहुत जोर से तेज आंधी और तूफान के साथ आग पैदा कर दिया जिससे पेड़ टूट कर गिरने लगे और जलने लगे उनके इस क्रोध को चन्द्रमा ने शांत किया ,चन्द्रमा ने दस प्रचेता से कहा कि ये पेड़ तो बहुत दीन और कमजोर है इन्हे मत जलाओ तुम्हे तो सृष्टि का विकास करना है और प्रजा की अभिवृद्धि करनी है। प्रजापतियों ने पेड़ पौधो को प्रजा के उपयोग के लिए ही बनाया है अतः इन्हे मत उखाड़ो। चन्द्रमा ने कहा यह देखो यह प्रमलोचना अप्सरा की कन्या मारिषा है इससे तुम विवाह करके प्रजा की उत्पत्ति करो ,इस प्रम्लोचना की कन्या मारिषा का पालन पोषण इन पेड़ पौधो ने ही किया है। ऐसा कहकर चन्द्रमा मारिषा को वही दस प्रचेता के पास छोड़कर चले गए। दस प्रचेता ने मारिषा से जिस पुत्र को जन्म दिया वह दक्ष कहलाया ,इस प्रचेतस दक्ष ने इस सृष्टि की प्रजा को जन्म दिया है विश्व की सम्पूर्ण मानव समूह दक्ष से ही जन्मा है।फिर दक्ष ने तीनो लोको की प्रजा को जन्म दिया। दक्ष की पत्नी का नाम था अक्सिनी जो पंचजन की पुत्री थी ,जब प्रजा की उत्पत्ति बढ़ नहीं रही थी तब दक्ष ने विंध्याचल पर्वत पर तपस्या की फिर उन्हें भगवान ने दर्शन दिया और प्रजा की के विकास के लिए आशीर्बाद दिया और समर्थ हो जाने पर दक्ष और उनकी पत्नी अक्सिनी ने हर्यक नाम के 10 हजार पुत्रों को जन्म दिया। इससे पहले जितने भी जन्म हुए थे वे मानसी थे अर्थात दक्ष और अक्सिनी से पहले की सारी सृष्टि मानसिक थी ,लौकिक और सहवास क्रिया [ human phisical sex ] से सृष्टि की रचना दक्ष से ही शुरू हुई।
दक्ष के 10 हजार हर्यक पुत्रो को जब दक्ष ने संतान उत्पन्न करने के लिए कहा तो वे पश्चिम दिशा में तप करने चले गए। पश्चिम में वे सिंधु और समुद्र के बीच स्थान पर नारायण सर नामक स्थान पर तप किया ,दक्ष के ये सभी 10 हज़ार पुत्र एक जैसे ही विचार के थे सभी ज्ञानी ,धर्म को जानने वाले और हरि भक्त थे उन्हें वहां नारद जी मिले ,नारद जी ने दक्ष के इन पुत्रो को ब्रह्म ज्ञान दे दिया जिससे प्रभावित होकर ये सभी अपने पिता की बात न मानकर देवलोक चले गए।
जब दक्ष को यह पता चला तो उन्हें बहुत बुरा लगा और दुःख हुआ ,दक्ष को सृष्टि की चिंता हुई की सृष्टि का विकास कैसे सम्भव है ?अतः दक्ष ने फिर 10 हजार पुत्रो को जन्म दिया इन 10 हजार पुत्रो को शबलाश्व कहा गया। ये शबलाश्व पुत्र सृष्टि की उत्पत्ति के लिए तप करने चले गए लेकिन नारद ने इन्हे फिर से ब्रह्म ज्ञान देकर प्रजा की बृद्धि में सहयोग न करने के लिए मना लिया। जब दक्ष को पता चला कि नारद जी ने दूसरी बार भी उनके पुत्रो को चौपट [बरबाद ] कर दिया है तो दक्ष को क्रोध आ गया और उन्होंने नारद को श्राप दे दिया कि तुम्हरा कभी घर नहीं होगा ,न परिवार होगा ,तुम यूँ ही मारे मारे फिरते रहना तुम्हारा कोई ठिकाना न होगा। तुमने मेरे पुत्रो को संतान उत्पन्न करने का ज्ञान न देकर उन्हें ब्रह्म ज्ञान दिया और उन्हें अपने कर्तव्य मार्ग से
च्युत [दूर ] कर दिया। दक्ष ने कहा की नारद तुम उन लोगो से भी वैर करते हो जो किसी से भी वैर नहीं रखता तुम लोक लोकान्तर में सदा भटकते ही रहो। किन्तु नारद जी ने दक्ष का बुरा नहीं माना।
तदनन्तर दक्ष ने 60 कन्याओं को जन्म दिया। उनमे से
A 1- 10 कन्याओं को धर्म को
A 2-13 कश्यप को
A 3-27 चन्द्रमा को
A 4-2 भूत को [ भूत की पत्नी, दक्ष की कन्या का नाम सरूपा था ]
A 5-2 अंगिरा को
A 6-2 कृशाश्वकों को
A 7-अंतिम 4 को तार्क्ष्य नामधारी कश्यप को ही
A 1-धर्म की 10 पत्नियों के नाम और पुत्र -
धर्म की पत्नी पुत्र का पुत्र
1-भानु देव ऋषभ इंद्र सेन
2 ,लम्बा , विधौत मेघ गण
3 कुकुभ , संकट कीकट
4 जामी , स्वर्ग नंदी
5 विश्वा , विश्वदेव संतानहीन
6 सध्या , साध्यगण अर्थसिद्धि
7 मरुत्वती , 1 मरुत्वान 2 जयंत
8 वसु , आठ प्रकार के वसु
9 मुहूर्ता मुहूर्त
10 और संकल्पा संकल्प
आठ प्रकार के वसु निम्न है
पत्नी पुत्र
1-द्रोण अभिमति हर्ष ,शोक ,भय
2-प्राण ऊर्जस्वती सह ,आयु ,पुरोजव
3-ध्रुव धरणी अभिमानी नगर देवता
4-अर्क वासना तृष्णा
5-अग्नि धारा द्रविण
6-दोष शर्वरी शिशुमार
7-वसु अंगिरसी विश्वकर्मा [शिल्पकर्ता ] चाक्षुँस मनु
8-विभावसु उषा व्युष्ट ,रोचिष और आतप
A 4 - भूत [ शंकर] की पत्नी से सरूपा से रूद्रो ने जन्म लिया इनमे से मुख्य 11 है ,रेवत ,अज ,भव,भीम ,वाम ,उग्र ,वृषाकपि ,अजैकपाद ,अहिर्बुन्ध ,बहुरूप ,महान आदि। अन्य भी हुए है जो मुख्य नहीं थे।
A 5-अंगिरा की दो पत्नी स्वधान से पितृगण दूसरी पत्नी सती से अथर्व अंगिरस वेद को ही पुत्र मान लिया।
A 6- कृशाश्वक की पत्नी अर्चि से धूम्रकेश और दूसरी पत्नी धिषणा से 4 पुत्र हुए वेदशिरा ,देवल ,वयुन और मनु
A 7-अंतिम 4 को तार्क्ष्य नामधारी कश्यप को 4 पुत्रिया मिली जो कश्यप की पत्नियां हुई 1-,विनता 2-कद्रू 3-पतंगी और 4-यामिनी
1-विनता से गरुण
2-कद्रू से सर्प [snake ]
3-पतंगी से पक्षी
4-यामिनी से कीट पैदा हुए।
A 3-27 पुत्रियां चन्द्रमा को मिली ,ये जो 27 नक्षत्र है रोहणी ,कृतिका ,आद्रा अश्वनी आदि है ये चन्द्रमा की पत्नियां ही है। रोहणी से अधिक प्रेम करने के कारण दक्ष ने चन्द्रमा को श्राप दे दिया था जिससे उसे क्षय रोग हो गया था।
A 2- कश्यप की 13 पत्नियों का विवरण part AO में देखे
क्रमशः
प्राचीनबहेिृ के पुत्र हुए दस प्रचेता ,दस प्रचेता इस से पहले की 9 स्रष्टि में अपना सहयोग दे चुके थे.चुकीं दस प्रचेता समुद्र में बैठकर तपस्या कर रहे थे जब तपस्या कर चुके तब वे बाहर आये और उन्होंने देखा कि सृष्टि में पेड़ ही पेड़ उग आये है धरती पर तब उन्होंने बहुत जोर से तेज आंधी और तूफान के साथ आग पैदा कर दिया जिससे पेड़ टूट कर गिरने लगे और जलने लगे उनके इस क्रोध को चन्द्रमा ने शांत किया ,चन्द्रमा ने दस प्रचेता से कहा कि ये पेड़ तो बहुत दीन और कमजोर है इन्हे मत जलाओ तुम्हे तो सृष्टि का विकास करना है और प्रजा की अभिवृद्धि करनी है। प्रजापतियों ने पेड़ पौधो को प्रजा के उपयोग के लिए ही बनाया है अतः इन्हे मत उखाड़ो। चन्द्रमा ने कहा यह देखो यह प्रमलोचना अप्सरा की कन्या मारिषा है इससे तुम विवाह करके प्रजा की उत्पत्ति करो ,इस प्रम्लोचना की कन्या मारिषा का पालन पोषण इन पेड़ पौधो ने ही किया है। ऐसा कहकर चन्द्रमा मारिषा को वही दस प्रचेता के पास छोड़कर चले गए। दस प्रचेता ने मारिषा से जिस पुत्र को जन्म दिया वह दक्ष कहलाया ,इस प्रचेतस दक्ष ने इस सृष्टि की प्रजा को जन्म दिया है विश्व की सम्पूर्ण मानव समूह दक्ष से ही जन्मा है।फिर दक्ष ने तीनो लोको की प्रजा को जन्म दिया। दक्ष की पत्नी का नाम था अक्सिनी जो पंचजन की पुत्री थी ,जब प्रजा की उत्पत्ति बढ़ नहीं रही थी तब दक्ष ने विंध्याचल पर्वत पर तपस्या की फिर उन्हें भगवान ने दर्शन दिया और प्रजा की के विकास के लिए आशीर्बाद दिया और समर्थ हो जाने पर दक्ष और उनकी पत्नी अक्सिनी ने हर्यक नाम के 10 हजार पुत्रों को जन्म दिया। इससे पहले जितने भी जन्म हुए थे वे मानसी थे अर्थात दक्ष और अक्सिनी से पहले की सारी सृष्टि मानसिक थी ,लौकिक और सहवास क्रिया [ human phisical sex ] से सृष्टि की रचना दक्ष से ही शुरू हुई।
दक्ष के 10 हजार हर्यक पुत्रो को जब दक्ष ने संतान उत्पन्न करने के लिए कहा तो वे पश्चिम दिशा में तप करने चले गए। पश्चिम में वे सिंधु और समुद्र के बीच स्थान पर नारायण सर नामक स्थान पर तप किया ,दक्ष के ये सभी 10 हज़ार पुत्र एक जैसे ही विचार के थे सभी ज्ञानी ,धर्म को जानने वाले और हरि भक्त थे उन्हें वहां नारद जी मिले ,नारद जी ने दक्ष के इन पुत्रो को ब्रह्म ज्ञान दे दिया जिससे प्रभावित होकर ये सभी अपने पिता की बात न मानकर देवलोक चले गए।
जब दक्ष को यह पता चला तो उन्हें बहुत बुरा लगा और दुःख हुआ ,दक्ष को सृष्टि की चिंता हुई की सृष्टि का विकास कैसे सम्भव है ?अतः दक्ष ने फिर 10 हजार पुत्रो को जन्म दिया इन 10 हजार पुत्रो को शबलाश्व कहा गया। ये शबलाश्व पुत्र सृष्टि की उत्पत्ति के लिए तप करने चले गए लेकिन नारद ने इन्हे फिर से ब्रह्म ज्ञान देकर प्रजा की बृद्धि में सहयोग न करने के लिए मना लिया। जब दक्ष को पता चला कि नारद जी ने दूसरी बार भी उनके पुत्रो को चौपट [बरबाद ] कर दिया है तो दक्ष को क्रोध आ गया और उन्होंने नारद को श्राप दे दिया कि तुम्हरा कभी घर नहीं होगा ,न परिवार होगा ,तुम यूँ ही मारे मारे फिरते रहना तुम्हारा कोई ठिकाना न होगा। तुमने मेरे पुत्रो को संतान उत्पन्न करने का ज्ञान न देकर उन्हें ब्रह्म ज्ञान दिया और उन्हें अपने कर्तव्य मार्ग से
च्युत [दूर ] कर दिया। दक्ष ने कहा की नारद तुम उन लोगो से भी वैर करते हो जो किसी से भी वैर नहीं रखता तुम लोक लोकान्तर में सदा भटकते ही रहो। किन्तु नारद जी ने दक्ष का बुरा नहीं माना।
तदनन्तर दक्ष ने 60 कन्याओं को जन्म दिया। उनमे से
A 1- 10 कन्याओं को धर्म को
A 2-13 कश्यप को
A 3-27 चन्द्रमा को
A 4-2 भूत को [ भूत की पत्नी, दक्ष की कन्या का नाम सरूपा था ]
A 5-2 अंगिरा को
A 6-2 कृशाश्वकों को
A 7-अंतिम 4 को तार्क्ष्य नामधारी कश्यप को ही
A 1-धर्म की 10 पत्नियों के नाम और पुत्र -
धर्म की पत्नी पुत्र का पुत्र
1-भानु देव ऋषभ इंद्र सेन
2 ,लम्बा , विधौत मेघ गण
3 कुकुभ , संकट कीकट
4 जामी , स्वर्ग नंदी
5 विश्वा , विश्वदेव संतानहीन
6 सध्या , साध्यगण अर्थसिद्धि
7 मरुत्वती , 1 मरुत्वान 2 जयंत
8 वसु , आठ प्रकार के वसु
9 मुहूर्ता मुहूर्त
10 और संकल्पा संकल्प
आठ प्रकार के वसु निम्न है
पत्नी पुत्र
1-द्रोण अभिमति हर्ष ,शोक ,भय
2-प्राण ऊर्जस्वती सह ,आयु ,पुरोजव
3-ध्रुव धरणी अभिमानी नगर देवता
4-अर्क वासना तृष्णा
5-अग्नि धारा द्रविण
6-दोष शर्वरी शिशुमार
7-वसु अंगिरसी विश्वकर्मा [शिल्पकर्ता ] चाक्षुँस मनु
8-विभावसु उषा व्युष्ट ,रोचिष और आतप
A 4 - भूत [ शंकर] की पत्नी से सरूपा से रूद्रो ने जन्म लिया इनमे से मुख्य 11 है ,रेवत ,अज ,भव,भीम ,वाम ,उग्र ,वृषाकपि ,अजैकपाद ,अहिर्बुन्ध ,बहुरूप ,महान आदि। अन्य भी हुए है जो मुख्य नहीं थे।
A 5-अंगिरा की दो पत्नी स्वधान से पितृगण दूसरी पत्नी सती से अथर्व अंगिरस वेद को ही पुत्र मान लिया।
A 6- कृशाश्वक की पत्नी अर्चि से धूम्रकेश और दूसरी पत्नी धिषणा से 4 पुत्र हुए वेदशिरा ,देवल ,वयुन और मनु
A 7-अंतिम 4 को तार्क्ष्य नामधारी कश्यप को 4 पुत्रिया मिली जो कश्यप की पत्नियां हुई 1-,विनता 2-कद्रू 3-पतंगी और 4-यामिनी
1-विनता से गरुण
2-कद्रू से सर्प [snake ]
3-पतंगी से पक्षी
4-यामिनी से कीट पैदा हुए।
A 3-27 पुत्रियां चन्द्रमा को मिली ,ये जो 27 नक्षत्र है रोहणी ,कृतिका ,आद्रा अश्वनी आदि है ये चन्द्रमा की पत्नियां ही है। रोहणी से अधिक प्रेम करने के कारण दक्ष ने चन्द्रमा को श्राप दे दिया था जिससे उसे क्षय रोग हो गया था।
A 2- कश्यप की 13 पत्नियों का विवरण part AO में देखे
क्रमशः
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