Kadru Vinita & Diti कद्रू विनीता और दिति Part AP
कश्यप की 13 पत्नियां थी ।उन 13 के नाम थे। 1-अदिति , 2 -दिति, 3- दनु ,4- काला, 5- दनायु ,6- सिंघका, 7 -क्रोधा, 8- प्राधा, 9- विश्वा ,10-मुनि 11- कपिला, 12- विनता, 13- कद्रू।
1-अदिति का विवाह हुआ कश्यप से। कश्यप के पुत्र हुए विवस्वान ,विवस्वान के पुत्र हुए इंद्र और मनु
2- दिति की कहानी हम सुन ही चुके है जिसका पुत्र हिरणाकश्यप था।दक्ष की 13 पुत्रियां थी जिसमे एक का नाम दिति था ,दिति के पुत्र का नाम हिरण्यकश्यप था हिरण्यकश्यप असुर जाति का था। जिसकी पत्नी का नाम कयाधु था। हिरण्यकश्यप के पांच पुत्र हुए प्रह्लाद सँहाद ,अनुहाद, शिबि ,और वाष्कल था ।प्रह्लाद एक अद्भुत बालक था जो विष्णु का भक्त था। प्रह्लाद के तीन पुत्र थे विरोचन ,कुम्भ,निकुम्भ।विरोचन के पुत्र का नाम बलि और बलि के पुत्र का नाम बाणासुर था। वाणासुर भगवन शंकर का भक्त हुआ। वाणासुर ही महाकाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद के पिता विष्णु भगवान से द्रोह करते थे और विष्णु की निंदा करते थे। प्रह्लाद को यह अच्छा न लगता। प्रह्लाद ने अपने पिता को बहुत समझाया किन्तु हिरण्यकश्यप न माने बदले में वे प्रह्लाद को हरी अर्थात विष्णु का नाम लेने पर पुत्र को दंड देते। हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में घोषणा कर दी थी कि कोई हरी या विष्णु का नाम नहीं लेगा। प्रह्लाद को अपने पिता का यह शासन अच्छा न लगा। हिरण्यकश्यप के बार बार मना करने पर भी प्रह्लाद जब नहीं माने तो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया। होलिका को इस बात का बरदान था की वह आग में जल नहीं सकती थी। हिरण्यकश्यप ने होलिका से कहा की तुम प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ जाओ जिससे प्रह्लाद की मृत्यु हो जाये। होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई यह सोचते हुए की प्रह्लाद जलकर मर जायेगा किन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद तो जलने से बच गया किन्तु होलिका आग में जलकर भस्म हो गयी जबकि होलिका को न जलने की शक्ति थी। हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से प्रजा और प्रह्लाद भयभीत रहते थे। हिरण्यकश्यप रोज रोज विष्णु के नाम लेने वालो पर अत्याचार कर रहा था एक दिन विष्णु स्वयं नरसिम्हा का अवतार लेकर हिरण्यकश्यप के महल में आकर हिरण्यकश्यप का वध कर देते है। नरसिम्हा भगवान का वह रूप है जिसमे आधा मानव और आधा सिंह होता है। यह कहानी सत युग की है।
अब 12 -13 कद्रू और विनीता की कहानी सुने।कद्रू और विनता कश्यप की पत्नियां थी। कद्रू के एक हजार पुत्र थे जो सर्प थे।कद्रू के सभी पुत्र जन्म ले चुके थे पर विनता के दो पुत्र हुए किन्तु जब वे अंडे में थे तो विनता ने उन्हें समय से पहले निकल लिया जब पहला अंडा फूटा तो उसने श्राप दिया की जिस कद्रू से तू ईर्ष्या के कारण मुझे समय से पहले निकल रही हे तू उसकी दासी बने यदि दूसरा पुत्र समय से जन्म लेगा वही तुम्हारा श्राप दूर करेगा। इस कारण से विनता डर गई और दूसरे पुत्र के जन्म की प्रतीक्षा करने लगी। समय पूरा होने पर विनता के एक पुत्र ने जन्म लिया जो सर्पो का काल गरुण हुआ। एक समय कद्रू और विनता आकाश की और देख रही थी तब उच्चेः श्रवा नमक एक घोडा जो समुद्र मंथन से निकला था, को दोनों ने देखा कद्रू ने विनता को धोका देने के लिए कहा की घोड़े की पूछ काली है ,जबकि पूछ काली नहीं थी ,विनता ने कहा की पूछ काली नहीं है दोनों में शर्त लग गई की जिसकी बात सही होगी वह स्वामी बनेगी और दूसरी दासी। कद्रू ने विनता को हारने के लिए अपने सभी सर्प पुत्रो को आज्ञा दी की सभी जाकर घोड़े की पूछ को ढक दे जो ऐसा नहीं करेगा वह एक सर्प यज्ञ {जनमेजय का सर्प यज्ञ }में मारे जाएँ। सर्पों ने घोड़े की पूछ ढक दी ,अब पूछ देखने में काली लग रही थी। कद्रू ने विनता से कहा की देखो घोड़े की पूछ कैसी है ?नियम के अनुसार विनता हार गई और उसे दासी बनना पड़ा ,कद्रू कपट से जीत तो गई पर गरुण ने किस प्रकार अपनी माँ को इस शर्त से कैसे मुक्त दी यह कहानी दूसरी होगी।
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