वामन अवतार incarnation of vaman
दक्ष की 27 पुत्रियाँ थी जिनमे एक का नाम अदिति था दूसरी का नाम दिति था। देवताओं की माँ अदिति थी वही असुरो की माँ दिति थी दोनों ही कश्यप की पत्नी थी। दिति के पुत्र थे आदि दैत्य हिरण्यकश्यपु ,हिरण्यकश्यपु के पुत्र हुए प्रह्लाद (prahlaad )प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रहलाद के पुत्र विरोचन थे ,विरोचन ब्राह्मण भक्त था। विरोचन के पुत्र थे वली।
वली बहुत ही तेजस्वी और प्रतापी था जो असुर सेना का सेनापति हुआ उसने पूरी पृथ्वी पर राज किया। वली ने पृथ्वी ही नहीं स्वर्ग पर भी विजय प्राप्त की और इंद्र सहित देवताओं को स्वर्ग से निष्काषित कर दिया।
देवताओं की पराजय से अदिति को बहुत कष्ट हुआ तब अदिति ने भगवान् विष्णु की आराधना की। अदिति देवताओं की विजय और इंद्र को फिर से स्वर्ग का राजा बनाना चाहती थी अदिति चाहती थी की देवताओं की विजय हो ऐसा सोचकर अदिति बहुत दिनों तक हिमालय पर भगवान् विष्णु की तपस्या करना लगी।
जब दैत्य सम्राट वली को यह पता चला की अदिति भगवान् विष्णु की तपस्या कर रही है तो वली ने अदिति के निकट वन में अग्नि लगा दी। जिससे अदिति की मृत्यु हो जाये किन्तु भगवान् ने अदिति की सहायता की और अपने सुदर्शन चक्र से अदिति को उस अग्नि से बचाये रखा जो वली ने वन में लगायी थी।
बहुत दिनोंबाद भगवान् विष्णु ने अदिति को दर्शन दिए और बचन दिया कि वे (विष्णु) अदिति के पुत्र होंगे और शत्रुओं का नाश करेंगे। अदिति ने कहा कि वे इस योग्य कहाँ कि वे विष्णु की माँ बन सकें,वे यह भी नहीं चाहती कि दैत्यों की मृत्यु हो क्योकि दैत्य भी अदिति की बहन दिति की ही संताने है और दोनों के ही पति महात्मा कश्यप है ?लेकिन अदिति चाहती थी कि उनके पुत्र विजयी रहे और स्वर्ग पर इन्द्र का ही शासन हो।
फिर भी विष्णु के आशीर्वाद और उनके बचन से अदिति विष्णु की माँ बनी। भगवान् विष्णु ने अदिति के पुत्र रूप में वामन अवतार लिया।
इधर राजा वली ने अपने गुरु शुक्राचार्य के कहने पर बहुत दिनों तक चलने वाले एक यज्ञ का आयोजन किया। गुरु शुक्राचार्य ने वली को पहले ही समझा दिया था कि विष्णु का वामन अवतार हो चुका है और यदि विष्णु वामन रूप में यज्ञ में आये तो कुछ मत देना।क्योकि अदिति की तपस्या से प्रसन्न होकर ही वामन अवतार हुआ है जो तुम्हारे विनाश का कारण है क्योकि अदिति तुम्हारा राज्य नहीं चाहती स्त्री बुद्धि तो प्रलयकारी होती ,अपनी बुद्धि से ही काम करना चाहिए किन्तु वली ने कहा कि गुरु जी आपको इस प्रकार धर्म विरुद्ध बात नहीं करनी चाहिए यदि स्वयं विष्णु कुछ मांगते है तो इससे अच्छा सौभाग्य और क्या होगा ?
यह बात चल ही रही थी की वामन रुपी भगवान् विष्णु उस यज्ञ में जा पहुंचे ,राजा वली ने वामन का स्वागत किया और यज्ञ में कुछ मांगने को कहा ,वामनरुपी विष्णु ने अपने लिए तीन कदम भूमि मांगी तब राजा वली ने तीन पग भूमि विष्णु को दान करदी।
राजा वली ने तीन पग भूमि दान करने के लिए संकल्प लेते हुए कलश के जल को वामन को देने लगे तब शुक्राचार्य को बहुत बुरा लगा इसलिए वह कलश में जा घुसा और जल निकलने के छिद्र में जल को रोकने लगा। विष्णु समझ गए कि कलश के अंदर शुक्राचार्य प्रवेश कर गया है अतः उन्होंने (विष्णु) ने कुश की नुकीली नोंक से छिद्र में चुभा दी जिससे शुक्राचार्य की एक आँख फूट गयी। उस छिद्र से निकलने वाले जल से ही गंगा का निर्माण हुआ।
तीन पग भूमि मिलते ही विष्णु भगवान का आकार बढ़ने लगा और दो कदम में ही पूरा ब्रह्माण्ड नाप लिया। विष्णु ने कहा मेरे दो कदम से ही पूरा ब्रह्माण्ड नाप लिया है तीसरा कदम कहाँ रखे तब वली ने आपने सिर पर तीसरा पग रखने को कहाँ ,पूरा ब्रह्माण्ड विष्णु का हो गया इंद्र को स्वर्ग मिला देवताओं की जीत हुई ,विष्णु ने वली पर भी कृपा की उसे रसातल का राज्य दे दिया और स्वयं रसातल के द्वारपाल बन गए।
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