हिरण्यकशिपु Hirnyakashipu Part AV

  • दिति के दो पुत्र थे हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष जिसमे हिरण्याक्ष का वध विष्णु जी ने वराह अवतार लेकर कर दिया था और पृथ्वी को रसातल से लाकर लोक कल्याण और सृष्टि के लिए बचा लिया था जिसका विरोध हिरण्याक्ष ने किया था किन्तु मारा गया इससे हिरण्यकशिपु विष्णु का विरोधी हो गया। हिरण्यकशिपु ने अपने भाई हिरण्याक्ष के मारे जाने का आरोप विष्णु पर लगाया और अपने परिवार के लोगो द्धिमूर्धा ,त्रयक्षः ,शम्बर ,शतवाहु ,हयग्रीव ,नमुचि ,पाक विप्रचित्त  ,इल्वल ,पुलोमा ,और शकुनि आदि से कहा देखो इस विष्णु ने हमारे भाई का वध किया है इसलिए हम विष्णु से बदला लेंगे इसके लिए वह मंदराचल पर्वत पर जाकर ब्रह्मा की तपस्या करने लगा उसने प्रण लिया की वह सम्पूर्ण जगत का राजा बनेगा और विष्णु का नाम मिटा देगा जगत में असुरों का ही राज रहेगा।  हिरण्यकशिपु की तपस्या से देवता भी विचलित हो गए वे भी ब्रह्मा से प्रार्थना करने लगे और ब्रह्मा से जाकर मिले तब ब्रह्मा जी स्वयं  हिरण्यकशिपु से मिले और तपस्या न करने की बात की फिर भी ब्रह्मा जी ने  हिरण्यकशिपु को आशीर्वाद में बहुत कुछ शक्ति दे दी। शक्ति पाकर  हिरण्यकशिपु ने इंद्र आदि सभी देवताओं को जीत लिया और उनके स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। हिरण्यकशिपु  में योग शक्ति ,  मानसिक शक्ति और  ,शरीरिक शक्ति का भंडार था। शंकर ,ब्रह्मा और विष्णु को छोड़कर सभी उसकी भक्ति और सेवा करने लगे।   हिरण्यकशिपु के पांच पुत्र हुए प्रह्लाद सँहाद ,अनुहाद, शिबि ,और वाष्कल था ।प्रह्लाद एक अद्भुत बालक था जो विष्णु का भक्त था Part N में प्रह्लाद की कहानी देखे। दैत्यों  के गुरु थे शुक्राचार्य ,शुक्राचार्य के दो पुत्र थे शंण्ड और अमर्क।  शंण्ड और अमर्क ने प्रह्लाद के गुरु थे उन्होंने प्रह्लाद को राजकीय शिक्षा दी थी किन्तु प्रह्लाद पहले से ही विष्णु भक्त था अतः उनकी शिक्षा का प्रभाव प्रह्लाद पर नहीं हुआ। एक बार  हिरण्यकशिपु प्रहलाद से कुछ बात कर रहे थे तब उन्होंने पिता को विष्णु को भगवान् कहा।
      हिरण्यकशिपु ने पुत्र प्रह्लाद से कहा मै तुम्हारा पिता हूँ और जगत का स्वामी हूँ इंद्र भी मुझसे डरता है तुम मुझे भगवान् से काम क्यों मानते हो ?विष्णु का तो कुछ दिख ही नहीं रहा जगत में तुमने विष्णु की शिक्षा कहाँ से ली?तब  हिरण्यकशिपु ने गुरु पुत्रो को बुलाया और पुछा कि प्रह्लाद को विष्णु के बारे में किसने सिखया ?गुरु पुत्रो ने कहा कि प्रह्लाद को हमने केवल लौकिक शिक्षा ही दी है यह तो आपके कुल का जन्मजात  कुलद्रोही पुत्र है जो हमने कभी नहीं सिखाया यह पता नहीं कहाँ से सीख लेता है
  •  प्रह्लाद को विष्णु के बारे में यह सब कैसे पता था ?इसके पीछे कहानी यह है कि जब  हिरण्यकशिपु ब्रह्मा की तपस्या के लिए मंदराचल पर्वत पर चले गए थे तब  हिरण्यकशिपु की पत्नी और प्रह्लाद की माँ जिसका नाम कयाधु था। कयाधु  को इंद्र ने बंदी बना लिया था उसे देखकर नारद ने इंद्र से कहा कि कयाधु निर्दोष है इसके पेट में गर्भ है यह  हिरण्यकशिपु का पुत्र होगा किन्तु यह बहुत बड़ा महात्मा है जिसे मारने की शक्ति किसी में नहीं है अतः इसे  मुक्त कर दो और मुझे दे दो। 
  • क्योकि कयाधु नारद जी के आश्रम पर रही और प्रह्लाद का जन्म नारद जी के आश्रम पर ही हुआ अतः प्रह्लाद विष्णु भक्त हुए थे वे पिता के विरोधी थे। 
  • जब  हिरण्यकशिपु को पता चला की उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त है और विष्णु को ही भगवान मानता है तो एक दिन  हिरण्यकशिपु ने ही प्रह्लाद से पूछा कहा है तुम्हारा विष्णु जिसकी तुम पूजा करते हो और भगवान् मानते हो ऐसा कहकर  हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारना चाहा और अपनी गदा से जोर से खम्बे पर  चोट की किन्तु भगवान् विष्णु ने खुद उस खम्बे से प्रकट होकर नरसिंह अवतार लेकर  हिरण्यकशिपु का वध कर दिया। 
  •  हिरण्यकशिपु  और  हिरण्याक्ष वास्तव में भगवान के पार्षद ही थे जिन्होंने सनकादि ऋषियों को विष्णु से मिलने रोक दिया था उनके श्राप से ही ये   हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष बने ,यही फिर रावण और कुम्भकर्ण  का जन्म लेते है। द्धापर में यही शिशुपाल और दन्तवक्त्र का जन्म लेते है। 
  • क्रमशः 























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